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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobelirtth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हरिविक्कमनरविक्कम,-हरिसिरिसेणाइसत्तपुत्ताणं, उवरिंमि अत्थि एगा, पुत्ती जयसुंदरीनामा ॥८७ ___ अर्थ-हरिविक्रम १ नरविक्रम २ हरिसेण ३ सिरिसेणादि ४ सातपुत्रों के ऊपर एक जयसुंदरीनाम की कन्या है ॥८७४॥ तीए कलाकलावं, रूवं सोहग्गलडहलावन्नं । दट्टण भणइ राया, कोणु इमीए वरो जुग्गो॥८७५॥ ___ अर्थ-उस कन्याका कलाका समूह और रूप आकृति सौभाग्यसे सुंदर लावण्य देखके राजा कहे इस कन्याके योग्य ||भर्तार कौन होगा ॥ ८७५ ॥ तो तीए उवज्झाओ भणइ महाराय तुज्झ पुत्तीए । सयलकलासत्थाइ, अवगाहंतीइ एयाए ॥८७६॥ | अर्थ-तब उस कन्याका उपाध्याय राजासे कहे हे महाराज सर्व कला शास्त्रका अभ्यास करती इस आपकी पुत्रीने शस्त्र कलाके प्रस्तावसे ॥ ८७६ ॥ सत्थप्पत्थावपत्तं, राहावेयस्स साहणसरूवं । विणएण अहं पुट्रो, कहियं च तयं मप एवं ॥८७७॥ | अर्थ-शस्त्र कलाके अधिकारसे प्राप्त भया राधावेधसाधनका स्वरूप विनयसे मेरेसे पूछा मैंने राधा वेधसाधनका स्वरूप इस प्रकारसे कहा ॥ ८७७ ॥ मंडिजंते थंभट्टिय?,-चक्काई जंतजोगेणं । सिद्विविसिट्टिकमेणं, एगंतरियं भमंताई ॥ ८७८ ॥ SHERLOCHISSAISTES For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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