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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल- चरितम् ॥१.९॥ रायपमुहोवि लोओ, भणइ अहो चुज्जमेगमेयंति। पूरिजति मणोगयाउ, एवं समस्साओ ॥ ८६९ ॥ भाषाटीकाPI अर्थ-राजा प्रमुख लोक इस प्रकारसे कहे अहो यह एक बड़ा आश्चर्य है कि औरोंकी मनोगत समस्या इस प्रका सहितम्. रसे पूर्ण करे ॥ ८६९ ॥ जं च इमं सकरेणं, पुत्तलयमुहेण पूरणं ताणं । तं लोउत्तरचरियं, कुमरस्स करेइ अच्छरियं ॥८७०॥ ___ अर्थ-जो अपने हाथके स्पर्शसे पूतलेके मुखसे समस्याका पूर्ण कराना वह कुमरका लोकोत्तर चरित है सर्व लोकोंसे प्रधान चरित आश्चर्य उत्पन्न करे है ॥ ८७० ॥ |राया नियधूयाए, तीए पंचहिं सहीहिं सहियाए । कारेइ वित्थरण, पाणिग्गहणं कुमारेणं ॥ ८७१॥ __ अर्थ-राजा पांच सखियों सहित अपनी पुत्रीका विस्तारविधिसे पाणि ग्रहण करावे ॥ ८७१॥ इत्थंतरंमि एगो भट्टो, दट्ठण कुमरमाहप्पं, पभणेइ उच्चसई, भो भो निसुणेह मह वयणं ॥ ८७२ ॥ ___ अर्थ-इस अवसरमें एक भट्ट कुमरका माहात्म्य देखके ऊंचे शब्दसे कहे कि अहो २ लोको मेरा वचन सुनो॥८७२॥ कुल्लागपुरे नयरे, अत्थि नरिंदो पुरंदरो नाम । तस्सत्थि पट्टदेवी, विजयानामेण सुपसिद्धा ॥ ८७३ ॥ ॥१०९॥ ___ अर्थ-कुल्लागपुर नगरमें पुरंदर नामका राजा है उस राजाके विजयानामकी अतिशय प्रसिद्ध पटरानी है ॥ ८७३ ॥ NOLE For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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