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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरितम् भाषाटीकासहितम्. श्रीपाल- अरिहंताईनवपय, नियमणु धरइ जु कोइ । निच्छइ तसु नरसेहरह, मणुवंच्छियफलहोई ॥ ८६३॥ है अर्थ-अहंदादि नवपदोंको जो कोई अपने मनमें धारण करे निश्चय उस नरशेखरके मनोवांछित फल होवे ॥८६॥ ॥१०८॥ तओ वियक्खणा पढेइ, अवर म झंखहु आल, तओ कुमरकरपवित्तो, पुत्रलओ पूरेइ । अरहंतदेव हसुसाधु गुरु, धम्म तु दयाविसाल, मंतुत्तमनवकारपर, अवर म झंखह आल ॥ ८६४ ॥ 31 अर्थ-तब विचक्षणा नामकी दूसरी सखी कहे अवरम झंख हु आल यह दूसरा समस्या पद तब कुमरके हाथसे पवित्र भया पूतला समस्या पूर्ण करे सो कहते हैं अरिहंत देव सुसाधु गुरु दयासे विशाल धर्म मंत्रोमें उत्तम नवकार मंत्र यह देवगुरुधर्ममंत्र प्रधान है इस कारणसे इन्होंको सेवो और सर्व अनर्थक वस्तु अंगीकार मत करो ॥ ८६४ ॥ तओ पउणा पढेइ, करि सफलउं अप्पाणु, पुत्तलओ पूरेइ, आराहिय धुरि देवगुरु, देहि सुपत्तिहिं जादाणु, तवसंजमउवयार करि, करि सफलउं अप्पाणु ॥ ८६५॥ ___अर्थ-तब प्रगुणा तीसरी सखी कहे करि सफलु अप्पाणु यह तीसरा समस्या पद तब पूतला पूर्ण करे धुरि नाम आदिमें देव वीतराग गुरू सुसाधु इन्होंकी सेवा करके सुपात्रको दानदेवो और तप संयम उपकार करके आत्माको सफल करो ॥ ८६५ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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