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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - निश्चय यह पुरुष जो कोई प्रकारसे मेरी मनोगत समस्या पूर्ण करे तब मैं पारपाया प्रतिज्ञाका जिसने ऐसी धन्य कृतपुण्य होऊं ॥ ८५९ ॥ पुच्छइ तओ कुमारो, कहह समस्सापयाई निययाइं | तो कुमरिसंन्निया, पंडियावि पढमं पयं पढइ ८६० अर्थ - तदनंतर कुमर पूछे तुम अपना समस्या पद कहो तब कुमरीने संज्ञा किया ऐसी पंडितासखी एक समस्या पद पढ़े ॥ ८६० ॥ मणुवंच्छिय फलहोइ, एसा सहीमुहेणं, जं कहइ समस्सापयं तयं मएणावि, पूरेयवं केणवि, | पुत्तलयमुहेण हेलाण ॥ ८६१ ॥ अर्थ — कौनसा समस्या पदसो कहते हैं मणुवंच्छिय फलहोइ यह पहला समस्या पद है यह समस्यापद सखीके | मुहसे सुनके कुमर विचारे यह राजकन्या सखी के मुखसे समस्या पद कहवाती है वह मैं कोई पूतलेके मुखसे समस्या पद पूर्ण करावं ॥ ८६१ ॥ इय चिंतिऊण पासट्ठियस्स, थंभस्स, पुत्तलयसीसे, कुमरेण करो दिन्नो, ता पुत्तलओ भणइ एवं ॥ ८६२॥ अर्थ - ऐसा विचारके कुमरने पास के थंभे में रहा हुआ पूतला उसके मस्तकपर हाथ रक्खा तब पूतला ऐसा बोला ॥८६२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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