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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐसे तुम हो तो अपने भाग्यपर कैसे नाराज नहीं होतेहो जिस दुर्भाग्यने तुमको दूषित किया मेरेपर नाराज क्यों होते हो । ८३४ ॥ इन्हि पुण तुम्हाणं, परित्थिअहिलासविहियपावाणं। सोहणखमं इमं मे, असिधारा तित्थमेवत्थि ॥ ८३५॥ अर्थ - इस वक्तमें परस्त्रीकी अभिलाषासे किया हैं पाप जिन्होंने ऐसे तुमहो तुझारे पापकी शुद्धि करने में समर्थ यह मेरे खड्गकी धारा रूप तीर्थही हैं ॥। ८३५ ॥ इय भणिऊणं तेसिं, खुज्जेणं दंसिया तहा हत्था । जह ते भीइविहत्था, सवेवि दिसोदिसिं नट्ठा ॥ ८३६॥ अर्थ - ऐसा कहके कूबड़ेने उन राजाओंको वैसा हाथ दिखाया कि वह तव राजा भयसे व्याकुल भए दिशो दिश भाग गए । ८३६ ॥ खुज्जेण तेण तह कहवि, दंसिओ विकमो रणे तत्थ । जह रंजियचित्तेहिं, सरेहिं मुक्का कुसमवुट्ठी ॥८३७॥ अर्थ - उस कूबडेने वहां संग्राममें उस प्रकारसे ऐसा पराक्रम दिखाया कि जिससे प्रसन्नभया मनजिन्होंका ऐसे | देवोंने कूबड़ेपर पुष्पों का वर्सात् किया ॥ ८३७ ॥ तं दहूणं सिरिवज्जसेण, -रायावि रंजिओ भणइ । जह पयडियं बलं तह, रूवं पयडेसु वच्छ नियं ॥ ८३८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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