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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल- अर्थ-वह सुनके कुमरी शीघ्र कूबड़ेका रूप जिसका ऐसे कुमरको वरे और कुमर अपना विशेष करके लोकोंको भालाका चरितम् |8| कुरूप दिखावे ॥ ८३०॥ सहितम्. इत्थंतरंमि सवे, रायाणो अक्खिवंति तं खुजं । रे रे मुंचसु एयं, वरमालं अप्पणो कालं ॥८३१॥ * ॥१०४॥ | अर्थ-इस अवसरमें सब राजा उस कूबड़ेपर आक्षेप करे कैसे सो कहते हैं रेरे कुज इस वरमालाको छोड़ कैसी है. वरमाला यह तेरी काल रूप है ॥ ८३१॥ ६ जइ किरि मुद्धा एसा, न मुणइ गुणागुणपि पुरिसाणं। तहवि हु एरिस कन्नारयणं, खुजस्स न सहामो ८३२८ ___ अर्थ-जो वह मुग्धा भद्रक स्वभाववाली पुरुषोंका गुण औगुण नहीं जाने तथापि ऐसा कन्या रत्न कूबड़ेको नहीं दे सकते हैं ॥ ८३२॥ जाता झत्ति चयसु मालं, नो वा अम्हं करालकरवालो। एसो तुह गलनालं, लुणिही नूनं सवरमालं ॥८३३॥ है। अर्थ-इस कारणसे शीघ्र मालाको छोड़ जो नहीं छोड़ेगा तो हमारी तलवार वरमाला सहित तेरा मस्तक छेदेगी। अर्थात् वरमाला सहित तेरा मस्तक लेलेवेगी ॥ ८३३ ॥ हसिऊण भणइ खुज्जो, जइ किरितुब्भेइमीइ नो वरिया। दोहग्गददेहा, कीसनरूसेहता विहिणो८३४ाटू अर्थ-तव कूबड़ा हसके कहे जो इस कन्याने तुमको नहीं बरा कैसे हो तुम दुर्भाग्यसे दूषित है शरीर जिन्होंका RSACREASURES ACANCE ॥१०४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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