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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - कुमर भी धवलसेठका चरित आचार विचारता हुआ क्षणमात्र सोच करके उसका मृतककार्य अग्निसंस्का रादि करके उसको जलांजलि दिलावे ।। ७५५ ॥ वरबुद्धिदाइणो जे, मित्ता धवलस्स आसि तिन्नेव । ते सव्वाइ सिरीए, कुमरेणहिगारिणो ठविया ॥७५६॥ अर्थ - प्रधानबुद्धिके देनेवाले धवलके तीनमित्रोंको कुमरने धवल सम्बन्धी सर्व लक्ष्मीका अधिकारीकिया ॥ ७५६ ॥ मयणातिगेण सहिओ, कुमरो तत्थ ट्ठिओ समाहीए । केवलसुहाइ भुंजइ, मुणिब्ब गुत्तितयसमेओ ५७ अर्थ-तीन मदनासहित कुमर उस नगरमें समाधिसे रहा हुआ केवल सुख भोगवे किसके जैसा तीनगुप्ति मन, वचन, कायगुप्तिसहित जैसे मुनि सर्व सुख भोगवे वैसा यहभी ।। ७५७ ॥ अन्नदिणे सो कुमरो, रयवाडीए गओ सपरिवारो । पिच्छइ एवं सत्थं, उत्तरियं नयरउज्जाणे ॥७५८ ॥ अर्थ — अन्य दिनमें परिवारसहित कुमर राजवाड़ी गया हुआ नगरके उद्यानमें एक सथवाड़ा उतरा हुआ देखे ७५८ जो तत्थ सत्थवाहो, सोवि हु कुमरं समागयं दहुं । घित्तूण भिहणाइ, पणमइ पाए कुमारस्स ७५९ अर्थ- जो वहां सार्थवाह है वह कुमरको आया भया देखके भेटना लेके कुमरको नमस्कार किया यानें भेट ना दिया ।। ७५९ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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