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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भो भो महाणुभावा, सम्मं धम्मं करेह जिणकहियं । जइ वंछह कल्लाणं, इहलोए तहय परलोए ५५९ अर्थ - अहो महानुभावो तुम तीर्थंकरका कहा हुआ धर्म अच्छी तरहसे करो जो इसभवमें और परभवमें कल्याण सुखकी इच्छा करते हो ॥ ५५९ ॥ धम्मो जिणेहिं कहिओ, तत्ततिगाराहणामओ रम्मो, । तत्ततिगं पुण भणियं, देवो य गुरू य धम्मो य ॥ अर्थ - तीर्थंकरोंने तीनतत्वकी आरानधारूप रमणीक मनोज्ञ धर्म कहा है तीनतत्व देव १ गुरू २ धर्म ३ देवतत्व १ गुरूतत्व २ धर्मतत्व ३ यह है ॥ ५६० ॥ इक्किस्स उ भेया, नेया कमसो दु तिन्नि चत्तारि । तत्थऽरिहंता सिद्धा, दो भेया देवतत्तस्स ॥ ५६१ ॥ अर्थ — और एक एक तत्वका क्रमसे २-३-४ भेद जानना देवतत्वके २ भेद गुरुतत्वके ३ भेद और धर्मतत्वके ४ भेद वहां देवतत्वके २ भेद अरहंत १ सिद्ध २ ॥ ५६१ ॥ आयरियउवज्झाया, सुसाहुणो चेव तिन्नि गुरुभेया । दंसणनाणचरितं तवो य धम्मस्स चउभेया ५६२ अर्थ - आचार्य १ उपाध्याय २ सुसाधु ३ यह तीन गुरुतत्वके भेद जानो । तथा दर्शन सम्यक्त्व ? ज्ञान तत्वका अवबोध २ विरतिरूप चारित्र ३ अनशनादि तप ४ यह धर्म तत्वका चार भेद है । ५६२ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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