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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपाल - चरितम् ॥ ६८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तो सिट्टी कुमरं पइ, जंपइ तुभ्भे अवेयणा जेण, भुलह अणज्जियं चिय, निच्चं निक्खीणकम्माणो ॥ ५३३॥ अर्थ - तदनंतर सेठ कुमरसे कहे आप अवेदन है नहीं विद्यमान है वेदन विचार जिन्होंको ऐसे किसकारणसे सो कहते है जिसकारण से आप निरंतर क्षीणकर्मी हो विनाकमाया हुआ भोगवोहो ॥ ५३३ ॥ | नूणं तुह्माणंपिव, अह्मेवि न तारिसा इहच्छामो, गच्छ तुमं चिय अह्मे, नियकज्जाई करिस्सामो ॥५३४॥ अर्थ - निश्चय आपके जैसा हमभी इसवक्त निक्षीणकर्मा नहीं कमायाहुआ खानेवाला नहीं रहें इसलिए आपही जाओ हमतो हमारा कार्य करेंगे ॥ ५३४ ॥ तो धवलं मुत्तणं, अन्नो सवोवि सत्थपरिवारो, । चलिओ कुमरेण समं, पत्तो जिणभवणपासंमि ॥ ५३५॥ अर्थ - वाद धवल सेठको छोड़के और सब परिवार कुमर के साथमें चला तब कुमर जिनमंदिर के पासमें पहुंचा ५३५ कुमरो भणेइ भो भो, पिहु पिहु गच्छेह जिणवरदुवारं, जेण फुडं जाणिज्जइ, सो दारुग्घाडओ पुरिसो ५३६ अर्थ-तब कुमर कहे अहो लोगो तुम अलग अलग जिनमंदिरमें जाओ जिससे प्रगट दरवज्जा उघाड़नेवाला पुरुष जाननेमें आवे ॥ ५३६ ॥ | तो जंपइ परिवारो, मा सामिय ? एरिसं समाइससु, । किं सुरमंतरेणं, पडिबोहइ कोवि कमलवणं ५३७ For Private and Personal Use Only भाषाटीकासहितम्. ॥ ६८ ॥
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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