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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जंजिणहरमझगओ, तुहकयपूयं निरिक्खमाणोवि। जाओऽहं सुन्नमणो, तुहवरचिंताइ खणमिकं ५१० ___ अर्थ-कैसे सोकि जो मैं जिनमंदिरमें आया हुआ तेरी करीभई पूजा देखता हुआभी तेरे वरकी चिंता करके एक क्षणमात्रतक शून्यमन होगया ॥ ५१० ॥ हतीए य मणोणेगत्तरूव,-आसायणाइ फलमेयं । संजायं तेण अहं, नियावराहं वियक्केमि ॥ ५११ ॥ अर्थ-उसमनसे अनेक प्रकारकी आशातना होती है उस आशातनाका यह जिनमंदिरका द्वार बंधभया यह फल हुआ उस कारणसे मैं अपना अपराध विचारूं हूं ॥ ५११॥ देवोय वीयराओ, नेवं रूसेइ कहवि किंतु इमं । जिणभवणाहिट्ठायग, कयमपसायं मुणसु वच्छे ५१२ 81 अर्थ-देवतो वीतराग है कोई प्रकारसे नहीं नाराज होवे किंतु हे पुत्रि यह जिनमंदिरके अधिष्ठायक देवका किया हुआ अप्रसाद अप्रसन्नपना तैं जान, ॥ ५१२॥ तत्तो नरेहिं आणाविऊण, बलिकुसमचंदणाईयं । कप्पूरागुरुमयनाहि,-धूवरूवं च वरभोगं ॥५१३॥ ___ अर्थ-उसके अनन्तर पूजाके निमित्त पुष्प चंदनादि सेवक लोगोंके पाससे मंगवाके और कपूर अगर कस्तूरी प्रमु8|खका प्रधान भोगदेवयोग्य द्रव्य मंगवाके ॥ ५१३ ॥ 4XUSUSISUSTUSSEISUS For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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