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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालचरितम् तो पुच्छइ मगहेसो, को एसो मुणिवरिंद सिरिपालो। कहतेण सिद्धचक्कं, आराहिय पावियं सुक्खं ३५ भाषाटीका___ अर्थ-वाद गौतमस्वामीके उपदेशके अनंतर मगधदेशका स्वामी श्रेणिक राजा प्रश्न करे हे मुनिवरेन्द्र यह सहितम्. श्रीपाल कौन उन श्रीपालराजाने श्रीसिद्धचक्रको आराधके कैसे सुख पाया ॥ ३५ ॥ तोभणइमुणी निसुणसु, नरवर अक्खाणयं इमरम्म। सिरिसिद्धचक्क माहप्प, सुंदरं परमचुजकरं ॥३६॥ ___ अर्थ-तब गौतमस्वामी बोले हे राजेन्द्र हे श्रेणिक महाराज ये श्रीपाल राजासम्बन्धी मनोज्ञ कथानक श्रीसिद्ध|चक्रमाहात्म्यकरके सुंदर उत्कृष्ट आश्चर्य करनेवाला सुन ॥ ३६॥ है तथाहि इहेव भरह खित्ते दाहिण खंडंमि अस्थिसुपसिद्धो। सवढि कयपवेसो, मालवनामेण वरदेसो ३७ ₹ __ अर्थ-वही दिखाते है इसी भरतक्षेत्रके दक्षिणार्धमें मालवनामका सुप्रसिद्ध प्रधान देश है कैसा है मालवदेश सर्वऋद्धिःने किया है प्रवेश जिसमें ऐसा ॥ ३७॥ सोय केरिसो, पए पए जत्थ सुगुत्ति गुत्ता, जोगप्पवेसा इव संनिवेसा। पए पए जत्थ अगंजणीया, कुडुंवमेला इव तुंगसेला ॥ ३८॥ | ॥५॥ अर्थ-जिस मालव देशमें पगपगमें याने ठिकाने ठिकाने वाडोंकरके वेष्टित याने बीटाहुआ ऐसे सन्निवेण नाम है। CLASSEXX For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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