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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल- XI अर्थ-यह सेठका वचन सुनके कुमर थोड़ा हसके बोला इन सब सुभटोंको जीविकाका जितना द्रव्य देते हो उतना भाषाटीकाचरितम् ! मेरेको चाहिए ॥ ४१७ ॥ सहितम्॥५४॥ तो सहसा विम्हिअओ, लिक्खं गणिऊण चिंतए सिट्ठी। दीणारकोडि एगा, सवेसि जीवणं अत्थि ४१८ ___ अर्थ-तदनंतर धवलसेठ आश्चर्यपायाहुआ शीघ्र सोनयियोंकी संख्या गिनके विचार करे सब सुभटोंका एक करोड़ सोनयिया होवेहै ॥ ४१८॥ एगो मग्गइ कोडिं, अहह अजुत्तं विमग्गियं नृणं। एएसिं किं अहियं, सिज्झिस्सइ कज्जममुणाऽवि ४१९ | अर्थ-यह अकेला करोड़ सोनयिया मांगताहै अहह इति खेदे खेदकी बातहै इसने अयुक्त मांगा निश्चय यह अकेला दसहजार सुभटोंसे जादा क्या कार्य करेगा ॥ ४१९ ॥ इय चिंतिऊण धवलेणुत्तं, जइ कुमर! दससहस्साई। गिन्हसितादेमि अहं, जंपुण कोडी तयं कूडं ४२० टू अर्थ-ऐसा विचारके धवलसेठ बोला हे कुमार जो वर्षका दसहजार सोनयिया लेओ तो मैं देऊं और जो तुमने करोड़ सोनयिया मांगा सो तो मिथ्याहै ॥ ४२० ॥ कुमरेणुत्तं मह तायतुल्ल, तुह जीवणेण नो कजं । किंतु अहं देसंतर, गंतुमणो एमि तुह सत्थे ॥४२१॥18॥ FACAMARPUR ACHEALUANLOADSSSSS ॥५४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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