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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-वह आश्चर्य देखके धवलसेठ मनमें विचारे जो यह पुरुष कोई प्रकारसे हमारे सहाई होवे तो कोईवक्त है। | कोई ठिकानेभी विघ्न नहीं होवे ॥ ४१३ ॥ इय चिंतिऊण धवलो, तंदीणाराण सयसहस्सं च।दाऊण विणयपणओ, भणेइ भोभोमहाभाग!४१४ ___ अर्थ-इस प्रकारसे विचारके धवलसेठ लाख सोनयिया कुमरको देके नम्र होके नमस्कार करके कुमरसे इस प्रकारसे बोला भोभो महाभाग हे महाभाग्यवान ॥ ४१४ ॥ दीणारसहसइक्विक्वमित्तयं, वरिसजीवणं दाउं । संगहिया संति मए, दससहसभडा ससोंडीरा ॥१५॥ अर्थ-एक २ हजार सोनयिया एक वर्षका जीवन याने आजीवका देके मैंने सौंडीर पराक्रम सहित दसहजार सुभदू टोंका संग्रह कियाहै अर्थात् दसहजार सिपाही रक्खेहैं ॥ ४१५ ॥ दूजइ तं पिहओलग्गं, गिन्हसि ता कहसु जीवणं तुज्झ। कित्तियमित्तं दिज्जइ,जेण तुमंगरुयमाहप्पो ४१६ ___ अर्थ-जो तुम सेवा अंगीकार करो हो तो तुम्हारा जीवन कहो तुमको कितना द्रव्य देवें जिस कारण तुम बड़े प्रभाव वाले हो ॥ ४१६ ॥ हसिऊण भणइ कुमरो, जित्तियमित्तं इमेसि सवेसिं। दिन्नं जीवणवित्तं, तित्तियमित्तं ममिकस ॥४१७॥ PAISESSASSOUHOSRSTICOS SAMACACAREER For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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