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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६० ) सम्मति लाइ ॥ प्रच्य जावविधि पूजन करिये, अष्टसिद्धि नवनिशि धर आई श्री० ॥ ४ ॥ नंद-वाण - निधि - चंद्र - संवर चैत्री पूनम यात्रा पाइ ॥ फूलचंद संघ सहित जिनजेटे, कृपा, चंद्र गिरि सिवसुखदाइ श्री० ॥ ५ ॥ इति पदम् ॥ ५ ॥ ॥ बीसथानक चैत्यवंदन ॥ श्री तिनं कांति सिद्ध निज गुण रामी ॥ प्रवचन आचारज स्थविर नवज्याया हितकामी ॥ साधुनाए दंसण नवम विनय चारित्र बखाणो ॥ ब्रह्म क्रिया तप गोयम जिन वेयावच्च जाणो ॥ १ ॥ समाधि पूरब ज्ञान ग्रहे श्रुत जति नित सार ॥ तीर्थ प्रजावन बीसमो निरुपम सुख दातार ॥ प्रथम चरम जगदीश सकल सेवी सही संपदा || इक दो नए पद जपी वावीस जिनवर पद मुदा ॥ २ ॥ ए विंशतिथानक कह्याए ज्ञाता ये जिनचंद ए सेवनथी जवि लहै त्रिभुवनपति कृपाचंद ॥ ३ ॥ इति पदम् ॥ १ ॥ || देशी की चाल ॥ ॥ सदगुरु पूजन जावस्यां ॥ ह्येतो कुशल सुरिंदगुणगास्यां हे माय स० ॥ श्रीफल नेटचढावस्यां, होतो चरणांरी पुजरचास्यां हे माय ॥ स० ॥ १॥ मारुदेशमे शोजता, एतो नगर विका राजे हे माय ॥ गाम गढाले दीपता, ज्यांरी महीयल महिमावा हे माय ॥ स० ॥ २ ॥ समय संकट चूरता, एतो कुशल करण अवतारी हे माय ॥ सुखदायक श्रीसंघने, एतो खरतरग अधिकारी हे माय ॥ ० ॥३॥ दूर देशांतरथी घणा, एतो हिल मिलयात्री खावे हे माय ॥ लुलु २ सीस नमावता, एतो संतसुजस For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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