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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( एए) प्राणिने दे बाध ॥ ० ॥ वी० ॥ ३ ॥ इंद्रिय विषय कंटक तिहारे ॥ लाख० ॥ दूर्द्धर साल समान ॥ सु० ॥ चजग‍ मारग चालतारे || ला || मोह करे हैरान ॥ ज० ॥ वी० ॥ ४ ॥ काल आमी के पड्योरे ॥ ला० ॥ बलताके निसदीस || सु० ॥ ए पदी उद्धरो रे || ला० ॥ तुम मोटा जगदीश ॥ उ० ॥ वी० ॥ ५ ॥ न सर जले जावसुं रे ॥ सा० ॥ नेट्या श्री भगवंत ॥ ० ॥ तेवीसम जिन सुख करूरे ॥ सा० ॥ महिमा वंत महंत || उ० ॥ वी० ॥ ६ ॥ बावन देहरी मां दीपतारे | ० ॥ मनोहर श्री जिनराज ॥ सु० ॥ अद्भुत दीगे देहरो रे ॥ ला० ॥ मांनु नवीन रच्यो आज । उ० ॥ वी० ॥ ७ ॥ दंरु कलश शोहे सदारे ॥ जा० ॥ धजा पताका लहकंत ॥ सु० ॥ मांजतां एहनीरे ॥ ला० ॥ जवि मनमां हरखंत ॥ ज० ॥ वी० ॥ ८ ॥ पूरब पुन्यश्री पामीयोरे ॥ ला० ॥ अनुपम जिन मुखचंद्र ॥ सु० ॥ कल मंरुन श्री जगधणीरे ॥ ला० ॥ वंदे नित कृपाचंद्र ॥ ० ॥ वी || || इति नप्रेसर मंकन महावीर स्तवनम् |४| ॥ राग काय मन ठुमरी ॥ O श्री गिरिराज आज निहाले, कामित पूरए वांवित दाइ ॥ पूरणपुन्य उदयजयो सजनी, उजालगिरिकी यात्रा पाइ श्री० ॥ १ ॥ नानिको नंदन जगत दिवाकर, इस तीरथपर श्राये चलाइ || पूरब निवाणूं श्री जगदीश्वर, रायणतल निज पगला वाइ श्री० ॥ २ ॥ महिमावंत महंत विराजै, श्री शत्रुंजय नेटो जाइ ॥ श्रीमुखवीर जिनेसर जाखै, सोहमपतिमन अधिक सुदाइ श्री० ॥ ३ ॥ सूरिधनेसर महिमा वरणी, पंचम गणधर For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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