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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१) बाउम जोमवारा ॥ प्रचुके चरण परताप संघमें, हमारतन प्रनु प्यारारे ॥ध० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥अथ श्रीसिघाचलस्तवनं लिख्यते ॥ ॥ सिरि सिघाचल गिरिवर राया परमातम पद संपद पाया, श्री अनजिनेसर जिनराया प्रनु मया करी, दिल रंजन दिदारकि मुजने दीजिये ॥ १॥ जे समता सुख सुधा आपे, जमता युत कुमतिलता कापे, वलि बोध बीजने थिर थापे ॥ प्रनु०॥ ॥२॥ पर पुद्गलममता दूरगमे, चेतनता निजघरमांहिं रमे, तिहां जनम मरण सहू दुःख विरमे ॥ प्रनु० ॥३॥ जेहथी लवपरणति चितनवसे अध्यातम अनुन्नव गुण विकसे तिहां सहज समाधि दशा उबसे ॥ प्रनु ॥॥ए अध्यातम वीनति मधुरी ॥ वाचक-गणि-क्षमा कल्याण करी ॥ ते सफल करो मुज हेत धरि ॥ प्रनु० ॥ ५॥ इति सिघाचलस्तवनं संपूर्णम् ॥ ४२ ॥ पीने जयवीयराय० ॥ वंदणवत्तियाए ॥ अन्न३० ॥ कहके एक नवकारका काउस्सग्ग करे ॥ पारिकं नमोऽहसिधा ॥ कहके स्तुति कहे सो लिखते हैं । ॥ शत्रुजगिरि नमियें षनदेव पुमरीक ॥ शुन तपनो महिमा, सुणि गुरु मुख निरनीक ॥ शुष मन उपवासें, विधिशुं चैत्यवंदनीक ॥ करिये जिन आगल, टासी वचन अलीक ॥ १॥ इति ॥ ४३ ॥४॥पीने फुरसद होवे तो पमिलेहण करे, सो लिखते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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