SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ पुमरीकगणधरजीस्तवनं । श्री पुंगरीक गणधर नमुं, पुंगरगिरि सिणगार खाल रे ॥ पांचकोम मुनि परिवखा, कीधो अणसण सार, लाल रे ॥ पुंग ॥१॥ आदीसर जिन उपदिसे, ए तीरथ परसाद, लाल रे ॥ शिवकमला तुमे पामशो, मेटी सद् विखवाद लाल रे ॥ पुंम ।। ॥२॥तीरथ पतीमां हूं अबु, प्रथमतीरथ श्म जाण, लासरे।। प्रथम सिह सिघाचले, तुमे श्रास्यो महिराण, लालरे ॥ पुंग ॥३॥ प्रनुनी प्राणा श्रादरी संलेखना चितलाय, लालरे ॥ चैत्रीदिन शिवपुर सह्या, घातीकर्म खपाय, साखरे ॥ पुंम ॥ ॥४॥यात्रा विधीसु कीजिए, जिनजी दियो उपदेश, लालरे॥ कृपाचंद गिरिराजनी, चाहे सेवा हमेश, सासरे ॥ पुंम ॥ ५॥ श्ती श्री पुंगरीक गणधरजी स्तवनं ॥ ॥अथ श्रीसिघाचलस्तवनम् ॥ सिघाचल गिरि नेव्या रे ॥ धन्य नाग्य हमारा विमलाचलगिरि० ॥ एह गिरिवरनो महिमा मोटो, कहेतां न श्रावे पारा ॥रायण रूख समोसस्या स्वामी, पूर्व नवाणू वारा रे ॥ध ॥१॥ मूलनायक श्रीश्रादिजिनेश्वर, चोमुख प्रतिमा चारा ॥ अष्ट अव्यसें पूजो लावें, समकित मूल आधारारे ॥ध ॥२॥ दूर देशान्तरथी हूं शहां आयो, श्रवण सुणी गुण तोरा ॥ पतितउधारण बिरुद तुमारो, एह तीरथ जग सारारे ॥ ध० ॥३॥नाव नक्तिसें प्रनु गुण गावे अपना जन्म सुधारा ॥ जात्रा करि जवि जन शुल नावे, नरक तिर्यंच गति वारारे ॥धः॥४॥ संवत अढार तयांसी मास आषाढे, वदि For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy