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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४) ॥ अथ परसमय तिमिरतरणिं ।। ॥ परसमयतिमिरतरणिं, जवसागर वारितरण वरतरणिं ॥ रागपरागसमीरं वंदे देवं महावीरम् ॥१॥ निरुघसंसारविहारकोरि, पुरन्त नावारिंगणानिकामं ॥ निरन्तरं केवलिसत्तमा वो, जवावहं मोहलरं हरंतु ॥२॥ संदेहकारि कुनयागमरूढगूढ संमोहपंकहरणामलवारिपूरम् ॥ संसारसागरसमुत्तरणोरुनावं, वीरागमं परमसिधिकरं नमामि ॥ ३ ॥ परिमल जरलोजालीढलोलालिमाला, वरकमलनिवासे हारनीहारहासे ।। अविरललवकारागारविचित्तिकारं, कुरुकमलकरे मे मङ्गलं देवि सारम् ॥४॥ इति ॥३५॥ अथवा संसारदावानी तीन गाथा कहे, सो लिखते हैं। ॥अथ संसारदावानीस्तुति ॥ ॥'संसारदावानलदाहनीरं, संमोहधूलीहरणे समीरम् ॥ मायारसादारणसारसीरं, नमामि वीरं, गिरिसारधीरम् ॥१॥ नावावनामसुरदानवमानवेन, चूलाविलोलकमलावलिमालितानि ॥ संपूरितालिनतलोकसमीहितानि, कामं नमामि जिनराज पदानि तानि ॥२॥ बोधागाधं सुपदपदवीनीरपूरानिरामं, जीवाहिंसाविरललहरीसंगमागाहदेहम् ॥ चूलावेलं गुरुगममणीसंकुलं दूरपारं, सारं वीरा गमजलनिधि सादरं साधु सेवे ॥ ३ ॥ श्रामूलालोलधूलीबहुलपरिमलालीढलोलातिमाला, फंकारारावसारामलदलकमलागारजूमीनिवासे ॥ गया १ साधवियां श्राविका संसारदावानी ३ गाथा कहै नमोऽर्हत् सिद्धान कहे. For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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