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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) प्रगट लोगस्स कहे। मुहपत्ती पमिलेही बे वांदणा देई सकल तीर्थनाम लेइ नमस्कार करे, सोलिखे हैं। ॥अथ सकलतीर्थ नमस्कार । ॥ स्रग्धरा वृत्तम् ॥ ॥ सन्नक्त्या देवलोके रविशशिजवने व्यतराणां निकाये, नक्षत्राणां निवासे ग्रहगणपटले तारकाणां विमाने ॥ पाताले पन्नगें स्फुटमणि किरणे ध्वस्तसांजांधकारे, श्रीमतीर्थकराणां प्रतिदिवसमहं तत्र चैत्यानि वंदे ॥ १॥ वैतान्ये मेरुभंगे रुचकगिरिवरे कुंमले हस्तिदंते, वरकारे कूटनंदीश्वरकनकगिरी नैषधे नीलवंते ॥चित्रे शैले विचित्रे यमकगिरिवरे चक्रवाले हिमाजौ ॥ श्रीम० ॥॥श्रीशैले विंध्यभंगे विमल गिरिवरे ह्यर्बुदे पावके वा,सम्मेते तारके वा कुलगिरिशिखरेऽष्टापदे स्वर्णशैले ॥ सह्यात्रौ चौर्जेयंते विपुलगिरिवरे गुर्जरे रोहणाऔ॥श्रीम ॥३॥ श्राघाटे भेदपाटे क्षितितटमुकुटे चित्रकूटे त्रिकूटे, लाटे नाटे च धाटे विटपिघनतटे हेमकूटे विराटेकर्णाटे हेमकँटे विकटतरकटे चक्रकूटे च नोटे ॥ श्री ॥४॥श्रीमाले मालवे वा मसयिनि निषधे मेखले पिछले वा, नेपाले नाहले वा कुवलय तितके सिंहले केरले वा ॥ माहाले कोशले वा विगलितसलिले जंगले वाढमाले ॥श्रीम० ॥५॥ अंगे वंगे कलिंगे सुगतजनपदे सत्प्रयागे तिलंगे, गौमे चौमे मुरमे वरतरविके जजियाणे च . १ चैत्रे १ चित्रे ४ क चौजयंते ख बैजयंते ५ क विपुलगिरिवरे ख विमलगिरि. ६ क अघाटे ख अषाढे ग आषामे ७ क हेमकूटे ख देवकूटे. For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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