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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) नमो जिणाणं जिअनयाणं ॥ ए॥ जे अईया सिझा ॥ जेश नविस्संति णागए काले॥ संपश् अ वट्टमाणा॥ सवे तिविहेण वंदामि ॥ १५॥ ॥अथ जावंति चेश्माई ॥ ॥ जावंति चेआई॥ जक्के अ अहे अतिरित्र लोएन ॥ सवाई ताई वंदे ॥ इह संतो तच संताई ॥१॥ इति ॥ १६ ॥ श्वामि खमा० ॥ ॥अथ जावंत केवि साहू ॥ ॥ जगवन जावंत केवि साहू ॥ जरहेरवय महाविदेहे अ॥ सोसिंतेसिं पण ॥ तिविहेण तिदमविरयाणं ॥१॥इति॥१७॥ ॥अथ परमेष्ठिनमस्कारः॥ ॥ नमोऽहत्सिघाचार्योपाध्यायसर्वसाधुन्यः ॥ १७ ॥अथ उपसर्गहरंस्तवनं ॥ ॥ जवसग्गहरं पास ॥ पासं वंदामि कम्मघण मुक्कं ॥ विसहरविसनिन्नासं ॥ मंगलकल्लाणावासं ॥१॥ विसहरफुलिंगमंतं ॥ कंठे धारेश् जो सया मणुढे ॥ तस्स गहरोगमारी ॥ कुछ जरा जंति उवसामं ॥२॥ चिन पुरे मंतो ॥ तुज्क पणामो वि बहुफलो होइ ॥ नरतिरिएसुवि जीवा ॥ पावंति न पुरक दोहग्गं ॥ ३ ॥ तुह सम्मत्ते बधे ॥ चिंतामणि कप्पपायवलहिए ॥ पावंति अविग्घेणं ॥ जीवा अयरामरं गणं ॥५॥श्य संथुळे महायस ॥ जत्तिजरनिष्लेरण हिअएण ॥ ता देव दिज बोहिं ॥ जवे नवे पास जिणचंद ॥५॥इति ॥१५॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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