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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५१) प्रकास्यो भविक जन आनंदनो, सर, नय, निधि, भू (१९७५) विक्रमवरसै पोषवदिएकादशी, जिनकृपाचंद्रसूरिपभण सुगुरु सेवो उल्लसी ॥ सु० ॥ २२ ॥ इति इग्यारशवृद्धस्तवनम् ॥ ॥रोहिणी तप स्तवनं ढाल पहेली ॥ वर्द्धमानजिनवरनमी, सुयदेवीसुपसाय । रोहिणीतप विधि वर्ण, शास्त्रथकी चितलाय, ॥१॥ कल्याणक ओली भली, पंचम्यादि तप जाण । इम बहुविधतपवर्णव्यो, 'तिम रोहिणी मन आण ॥२॥ हारे मारा ठामधर्मनासाढापचवीसदेशजो ॥ एदेशी ॥ हारे म्हारे जंबूद्वीपमांभरतक्षेत्रमनुहारजो, अंगदेशनगीनो सोहेअतिभलोरेलोय ॥ हां० ॥ चंपानामें सुंदरनवलीनयरीजो, वासुपूज्यनन्दन जगवन्दननृपतिलोरे लोय ॥ ३ ॥ हां०॥ मघवाराजा जगतदिवाजातत्थजो, कमलाराणी सीयलसुहाणीरायने रे लो ॥ हां० ॥ सुखभोगवतां पुन्य तणे परभावजो, आठपुत्र थयाराणी मनमां भायनेरे लो० ॥ ४ ॥ हां० ॥ तेउने ऊपर रोहणी नामे पुत्री जो, मात पिताने वाहली घणी ते ऊपनीरे लो० ॥ हां० ॥ चंद्रकलाजिम पुत्रीवधेसुहेण जो, पांचधाय करि पालतां योवनवयनीपनीरे लो० ॥५॥ हां० ॥ सुरकुंवरीसम देखी राजा पुत्रीजो, वरचिन्तामनपेठी रायनेतिणसमेंरे लो. ॥ हां० ॥ स्वयम्बरामण्डपमांड्यो पुहवीनाथ जो, देशदेशना भूपतितेड्या सुख समेरे लोय ॥ ६॥ हां० वीतसोकराजानो नन्दननाम जो, सोभागी गुणरागी कन्याये वोरे लो० हां० पूरवभवना पुन्यथी थयोविवाहजो, बहुलीसम्पदापामीकुंवरकारजसोरे लो० ॥७॥ हां०॥ रङ्गरलीथइ सहु पहोता निजठाम जो, चित्रसेनने राज्य For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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