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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७ ) सम देकर | इला० ॥ संदि० ॥ जगवन् बेसबो वाचं ? गुरु कहे गए || फेर कहकें खमासमण देकर ॥ ० ॥ संदि० ज० ॥ सजाय संदिस्सावुं ? गुरु कहे संदिस्सावेह || पीठें लं कहके वली खमासमण देकर इला० संदि० जग० ॥ सद्याय करूं ? गुरुक करेह ॥ फेर खमासमण दे के खने होकर व नवकार कहकर सद्याय करे तथा जो शीतकालादि होवे तो खमासमण देकें इला० संदि० ज० ॥ पांगरणी संदिस्सावं ? गुरु कहे संदिस्सावेह || पीछें इलं कह कर खमा - समय देकर छा० संदि० ज० ॥ पांगरणो परिग्गहुं ? गुरु कहे पग्गिएह || पीठें लं कही वस्त्र ग्रहण करे तथा सामाकिवंत अथवा पोसासहित श्रावक वांदे तो “वंदामो” ऐसो कहे . और जो कोई दूसरो वांदे तो. सद्याय करेह. एसोक हे ॥ इतिप्राजातिक सामायिक विधि ॥ १ ॥ ॥ अथ राई प्रतिक्रमण विधि प्रारंभः ॥ प्रथम एक खमासमण दे के इला० संदि० ज० द करूं ? गुरु कहे करेह || पी कही जयत सामि इत्यादि कहे, सोहि लिखते हैं ॥ ॥ चैत्यवं ॥ अथ सकलतीर्थंकरनमस्कारो लिख्यते ॥ ॥ जय सामिय जय सामिय, रिसह सत्तुंजि ॥ उति पटु नेमि जिए, जयन वीर सच्चरि मंकण ॥ १ ॥ जरामुविय, मधुरिपास दुह दुरिय खंगण || अवर विदेहिज तिलयरा, चिह्नं दिसि विदिसि जं केवि ॥ तीच्या गयसंप बंडु जिए सबेवि ॥ २ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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