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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०९) उत्तममुख मधुरी भाषा, जिम वनकेतकि महमहे ए ॥ जिमभूमीपति भुयवल चमके जिम जिनमंदिर घंटारणके, गोयमलबधे गहगह्यो ए ॥ ४१ ॥ चिंतामणि करचढीयो आज, सुरतरुसारे वंछिय काज, कामकुंभ सहुवशि हुआए ॥ कामगवी पूरे मनकामी, अष्टमहासिद्धि आवे धामी, सामी गोयम अणुसरी ए ॥४२॥ पणवरकर पहिलोपभणी जें, माया बीजो श्रवण सुणीनें ॥ श्रीमिति सोभा संभव ए ॥ देवांधुर अरिहंत नमीजें, विनयपहू उवझाय थुणीजें, इण मंत्र गोयम नमो ए ॥४३॥ परघर वसतां कांयकरीजें, देस देसांतर काय भमीजें कवण काज आयास करो ॥ प्रहऊठी गोयम समरीजें, काज समग्गल ततखिण सीझे नवनिधि विलसे तिहां घरे ॥४४॥ चवदयसय बारोत्तर वरसें, गोयम गणहर केवल दिवसें, कीयोकवित उपगारपरो ॥ आदहिं मंगल एपभणीजें परव महोछव पहिलो दीजें, रिद्धि वृद्धि कल्याण करो ॥ ४५ ॥ धन माता जिण उयरें धरियों धन्य पिता जिण कुल अवतरियो, धन्य सुगुरु जिण दीरिक योए ॥ विनयवंत विद्या भंडार, तसु गुण पुहवी न लप्भइ पार, बड जिन साखा विस्तरो ए ॥ गोयमस्वामीनो रास भणीजें चउविह संघरलियायतकीजें, रिद्धिवृद्धि कल्याण करो ॥ ४६ ॥ कुंकुमचंदन छडो दिवरावो, माणकमोतीना चोक पूरावो, रयणसिंहासण बसणो ए॥ तिहां बैठि गुरु देशनादेसी भविक जीवनाकाज सरेसी, नितनित मंगल उदयकरो ॥ ४७ ॥ इति श्रीगौतमखामीनो रास संपूर्ण ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020721
Book TitleShravak Nitya Krutya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkrupachandrasuri
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1923
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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