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(१०७) निय काय प्रमाण, चिहुं दिसि संठिय जिणहर विध ॥ पणमवि मन उल्लास, गोयमगणहर तिहां वसिय ॥ २७॥ वयरसामीनो जीव, तिर्यकजुंभकदेव तिहां ॥ प्रतिबोध्यापुंडरीक कंडरीक अध्ययन भणी ॥ वलता गोयमसामि, सवितापस प्रतिबोध करे ॥ लेई आपण साथ, चाले जिम जूथाधिपति ।। २८ ॥ खीरखांड घृत आण, अमिय वूठ अंगूठठवे, गोयम एकण पात्र, करावे पारणो सवे ॥ पंचसयां शुभ भाव, उजलभरियो खीरमिसे ॥ साचा गुरुसंयोग, कवल ते केवल रूप हुअ ॥ २९ ॥ पंचसया जिणनाह, समवसरण प्राकारत्रय ॥ पेखवि केवल नाण, उप्पन्नो उज्जोय करे॥ जाणवि जण पीयूष, गाजंती घनमेघजिम ॥ जिनवाणी निसुणेवि, नाणी हुया पंचसया ॥ ३० ॥ वस्तु ॥ इण अनुक्रम इण अनुक्रम नाण संपन्न पन्नरेसें परिवरिय, हरियदुरिय जिणनाह वंदइ, जाणवी जगगुरु वयण, तिहिं नाण अप्पाण निंदइ, चरमजिनेसर इस भणे, गोयम मकरिस खेव, छेह जाय आपणसही, होस्यां तुल्ला वेव ॥ ३१ ॥ भास उ ॥ सामियो ए वीर जिणंद, पूनमचंद जिम उल्लसिय ॥ विहरियो ए भरहवासंमि, वरस बहुत्तर संवसिय ॥ ठवतो ए कणयपउमेण, पायकमल संचे सहिय ॥ आवियो ए नयणाणंद, नयरपावापुर सुरमहिय ॥ ३२ ।। पेखि यो ए गोयमसामि, देवसमा प्रतिबोध करे ॥ आपणो ए त्रिसलादेवि, नंदन पुहतो परमपए ॥ वलतो ए देव आकाश, पेखवि जाण्यो जिण समे ए॥ तो मुनि ए मनविखवाद, नादभेद जिम ऊपनो ए॥ ३३ ॥ इण समे ए सामिय देखि, आपकनासू टालियो
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