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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ૪૨ .. श्रमण-सूत्र बत्तीस अस्वाध्याय बत्तीस अस्वाध्यायों का वर्णन स्थानाङ्ग सूत्र में है । वह इस प्रकार है--दश अाकाश सम्बन्धी, दश औदारिक सम्बन्धी, चार महाप्रतिपदा, : चार महाप्रतिपदाओं के पूर्व की पूर्णिमाएँ, और चार सन्ध्याएँ । अन्य ग्रन्थों में कुछ मत भेद भी हैं । परन्तु यहाँ स्थानाङ्ग सूत्र के अनुसार ही लिखा जा रहा है। .. (१) उल्कापात--आकाश से रेखा वाले तेजःपुञ्ज का गिरना, अथवा पीछे से रेखा एवं प्रकाश वाले तारे का टूटना, उल्कापात कहलाता है । उल्कापात होने पर एक प्रहर तक सूत्र की अत्वाध्याय रहती है । -- : (२) दिग्दाह-किसी एक दिशा-विशेष में मानों बड़ा नगर जल रहा हो, इस प्रकार ऊपर की ओर प्रकाश दिखाई देना और नीचे अन्धकार मालूम होना, दिग्दाह है। दिग्दाह के होने पर एक प्रहर तक अस्वाध्याय रहती है। (३) गर्जित-बादल गर्जने पर दो प्रहर तक शास्त्र की स्वाध्याय नहीं करनी चाहिए। . (४) विद्युत-बिजली चमकने पर एक प्रहर तक शास्त्र की स्वाध्याय करने का निषेध है । पार्द्रा से स्वाति नक्षत्र तक अर्थात् वर्षा ऋतु में गर्जित और विद्युत की अस्वाध्याय नहीं होती । क्योंकि वर्षा काल में ये प्रकृतिसिद्धस्वाभाविक होते हैं । (५) निर्घात-विना बादल वाले आकाश में व्यन्तरादिकृत गर्जना की प्रचण्ड धनि को निर्घात कहते हैं । निर्घात होने पर एक अहोरात्रि तक अस्वाध्याय रखना चाहिए । (६) यूपक-शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा, द्वितीया और तृतीया को सन्ध्या की प्रभा और चन्द्र की प्रभा का मिल जाना, यूपक है । इन For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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