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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir संक्षिप्त प्रतिक्रमण-सूत्र जाता है। क्योंकि पारिभाषिक शब्दों का केवल शब्दार्थ के द्वारा निर्णय नहीं किया जा सकता। उत्सूत्र उत्सूत्र का अर्थ सूत्र-विरुद्ध आचरण है। सूत्र-मूल आगम को कहते हैं । वह अर्थों की सूचना करता है, अतः सूत्र कहलाता है। 'अर्थ-सूचनात्सूत्रम्'–बृहत्कल्प प्रथम उद्देश की मलयगिरि टीका | अथवा 'उस्सुत्तो' का संस्कृत रूप उत्सूक्त भी बनाया जाता है। सूक्त का निर्वचन है-अच्छीतरह कहा हुअा शास्त्र--सुप्छु उक्तमिति । सूक्त विरुद्ध उत्सूक्त होता है। उन्मार्ग - उन्मार्ग का अर्थ है मार्ग के विरुद्ध आचरण करना । हरिभद्र आदि प्राचीन टीकाकार क्षायोपशमिक भाव को मार्ग कहते हैं, और क्षायोपशमिक भाव से औदयिक भाव में संक्रमण करना उन्मार्ग है। चारित्रावरण कम का जब क्षयोपशम होता है, तब चारित्र का आविर्भाव होता है । और जब चारित्रावरण कम का उदय होता है तब चारित्र का घात होता है । अतः साधक को प्रतिक्षण उदयभाव से क्षायोपशमिक भाव में सचरण करते रहना चाहिए । ____ उन्मार्ग का अर्थ, परंपरा के विरुद्ध श्राचरण करना भी किया जाता है । मार्ग का अर्थ परम्परा है। पूर्व-कालीन त्यागी पुरुषों द्वारा चला अाने वाला पवित्र कर्तव्य-प्रवाह मार्ग है । 'मग्गो भागमणीई, अहवा संविग्ग-बहुजणाइगणं'-धम रत्न-प्रकरण । अकल्प ___ चरण और करण रूप धर्म व्यापार का नाम कल्प है-आचार है। जो चरण करण के विरुद्ध आचरण किया जाता है, वह अकल्प है। चरण सप्तति और करण सप्तति का निरूपण परिशिष्ट में किया गया है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र यहाँ ज्ञान से सम्पग ज्ञान का ग्रहण है, और दर्शन तथा चारित्र से For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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