SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४६ श्रमण सूत्र श्रागे बढ़े तो विश्व का कल्याण कर सकता है। नरक के समान दुःखाकुल संसार को स्वर्ग में परिणत कर देना उसके बाएँ हाथ का खेल है। ___राक्षस, यों कि यदि वह दुराचार के कुमार्ग पर चले तो अपनी भी शान्ति खोता है, दूसरों की भी शान्ति खोता है, और संसार में सत्र ओर त्राहि-त्राहि मचा देता है। स्वर्ग के समान सुखी संसार को रौरव नरक की घोर यन्त्रणाओं में पटक देना, उसका साधारण-सा हँसी खेल है। मनुष्य के पास उसे देव और गक्षस बनाने के लिए तीन महान् शक्तियाँ हैं-मन, वचन, और शरीर । इनके बल पर वह भला बुरा जो चाहे कर सकता है। उक्त तीनों शक्तियों को विश्व के कल्याण में लगाया जाय तो उधर वारा न्यारा है; और यदि अत्याचार में लगा दिया जाय तो उधर सफाचट मैदान है। मनुष्य का भविष्य इन्हीं के अच्छे बुरेपन पर बना बिगड़ा करता है। अतएव धर्म शास्त्रकारों ने जगह-जगह इन पर अधिक से अधिक नियंत्रण रखने का जोर दिया है। ____ साधु मुनिराज स्वपरोद्धारक के रूप में संसार के रंग मंच पर अवतीर्ण होते हैं; अतः उन्हें तो पद-पद पर मन, वचन और शरीर की शुभाशुभ चेटाबों का ध्यान रखना ही चाहिए । इस सम्बन्ध में जरा सी भी लापरवाही भयंकर पतन के लिए हो सकती है। अस्तु, प्रस्तुत पाठ में इन्हीं तीनों शक्तियों से दिन रात में होने वाली भूलों का परिमार्जन किया जाता है और भविष्य में अधिक सावधान रहने की सुदृढ़ धारणा बनाई जाती है। यह प्रतिक्रमण का प्रारंभिक सामान्य सूत्र है। इसमें सक्षेत्र से श्राचार-विचार-सम्बन्धी भूलों का प्रतिक्रमण किया जाता है। अगले पाठों में जो विस्तृत प्रतिक्रमण-क्रिया होने वाली हैं, उसकी यहाँ मात्र आधारशिला रखी गई है। सम्प्रति, सूत्र में आए हुए कुछ विशेष शब्दों का स्पीकरण किया For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy