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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir द्वादशावर्त गुरुवन्दन-सूत्र भावार्थ [१. इच्छा निवेदन स्थान ] ..हे क्षमाश्रमण गुरुदेव ! मैं पाप प्रवृत्ति से अलग हटाए हुए अपने शरीर के द्वारा यथाशकि आपको वन्दन करना चाहता हूँ । [ २. अनुज्ञापना स्थान ] = श्रतएव मुझको अवग्रह में आपके चारों ओर के शरीर-प्रमाण क्षेत्र में कुछ परिमित सीमा तक प्रवेश करने की आज्ञा दीजिए । २७३ मैं अशुभ व्यापारों को हटाकर अपने मस्तक तथा हाथ से आपके चरण कमलों का सम्यग रूप से स्पर्श करता हूँ । - चरण स्पर्श करते समय मेरे द्वारा आपको जो कुछ भी बाधा = पीड़ा हुई हो, उसके लिए क्षमा कीजिए । [ ३. शरीरयात्रा पृच्छा स्थान ] क्या ग्लानि रहित आपका आज का दिन बहुत आनन्द से व्यतीत हुआ ? [ ४. संयमयात्रा पृच्छा स्थान ] क्या आपकी तप एव संयम रूप यात्रा निर्बाध है ? 1 [ ५. संयम मार्ग में बापनीयता = मन, वचन, काय के सामर्थ्य की पृच्छा का स्थान ] क्या आपका शरीर मन तथा इन्द्रियों की बाधा से रहित सकुशल एव ं स्वस्थ है ? For Private And Personal [ ६. अपराध - समापना स्थान ] हे तमाश्रमण गुरुदेव ! मुझसे दिन में जो व्यतिक्रम=अपराध हुआ हो, उसके लिए क्षमा करने की कृपा करें । भगवन् ! आवश्यक क्रिया करते समय मुझसे जो भो विपरीत आचरण हुआ हो, उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । हे क्षमाश्रमण गुरुदेव ! जिस किसी भी मिथ्याभाव से, द्वेष से,
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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