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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir बोल-संग्रह ४३५ उपर्युक्त ४७ दोषों का वर्णन पिण्डनियुक्ति, प्रवचनसार, आवश्यक श्रादि में आता है। प्रत्येक टीकाकार कुछ अर्थ भेद की भी सूचना देते हैं । यहाँ सामान्यतया प्रचलित अर्थों का ही उल्लेख किया गया है। ( १७ ) चरण-सप्तति वय समणधम्म, संजम वयावचं च बंभगुत्तीयो। नाणाइतियं तवं, कोह-निग्गहाई चरणमेयं ॥ —ोधनियुक्ति-भाष्य पाँच महाव्रत, क्षमा आदि दश श्रमण-धर्म, सतरह प्रकार का संथम, दश वैया वृत्य, नौ ब्रह्मचर्य की गुप्ति, ज्ञान दर्शन-चारित्ररूप तीन रत्न, बारह प्रकार का तप, चार कपायों का निग्रह---यह सत्तर प्रकार का चरण है। करण-सप्तति पिंड विसोही समिई, भावण पडिमा य इंदियनिरोहो । पडिलेहण गुत्तीओ, अभिग्गहा चेव करणं तु ।। -श्रोधनियुक्ति भाष्य श्रशन श्रादि चार प्रकार की पिण्ड विशुद्धि, पाँच प्रकार की समिति, बारह प्रकार की भावना, बारह प्रकार की भिक्षु-प्रतिमा, पाँच प्रकार For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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