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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir बोल-संग्रह (३) निमित्त-शुभाशुभ निमित्त बताकर श्राहार लेना । (४) आजीव-पाहार के लिए जाति, कुल श्रादि बताना । (५) वनीपक-गृहस्थ की प्रशंसा करके भिक्षा लेना । (६) चिकित्सा --औषधि आदि बताकर आहार लेना। (७) क्रोध---क्रोध करना या शापादि का भय दिखाना । (८) मान-अपना प्रभुत्व जमाते हुए श्राहार लेना। (६) माया-छल कपट से आहार लेना। (१०) लोभ-सरस भिक्षा के लिए अधिक घूमना । (११) पूर्वपश्चात्संस्तव-दान-दाता के माता-पिता अथवा सासससुर आदि से अपना परिचय बताकर भिक्षा लेना । (१२) विद्या-जप आदि से सिद्ध होने वाली विद्या का प्रयोग करना। (१३) मंत्र-मंत्र प्रयोग से आहार लेना। (१४) चूर्ण--चूर्ण श्रादि वशीकरण का प्रयोग करके श्राहार लेना। (१५) योग--सिद्धि आदि योग-विद्या का प्रदर्शन करना । (१६) मूलकर्म-गर्भस्तंभ आदि के प्रयोग बताना । उत्पादन के दोष साधु की अोर से लगते हैं। इनका निमित्त साधु ही होता है। __ ग्रहणेपणा के १० दोष संकिय मक्खिय निक्खित्त, पिहिय साहरिय दायगुम्मीसे । अपरिणय लित्त छड्डिय, एसण दोसा दस हवन्ति ॥१॥ (१) शङ्कित-प्राधाकर्मादि दोषों की शंका होने पर भी लेना । (२) प्रक्षित-सचित्त का संघट्टा होने पर आहार लेना । (३) निक्षिप्त-सचित्त पर रक्खा हुआ पाहार लेना । For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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