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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir मानव जीवन का ध्येय का गला काट कर मिले । ग़रीब जनता के गर्म खून से सना हुआ पैसा भी उसके लिए पूज्य परमेश्वर है, उपास्य देव है। उसका सिद्धान्त सूत्र अनादि काल से यही चला आ रहा है कि 'सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति ।' 'भाना अंशकला प्रोक्रा रूप्योऽसौ भगवान् स्वयम् ।' परन्तु क्या मानव जीवन का यही ध्येय है कि धन के पीछे पागल बनकर घूमता रहे ? क्या धन अपने आप में इतना महत्वपूर्ण है ? क्या तेली के बैल की तरह रात दिन धन की चिन्ती में घुल-घुल कर ही जीवन की अन्तिम घड़ियों के द्वार पर पहुँचा जोय ? यदि दुनिया भर की बेईमानी करके कुछ लाख का धन एकत्रित कर भी लिया तो क्या बन जायगा ? रावण के पास कितना धन था ? सारी लंका नगरी ही सोने की थी। लंका के नागरिक सोने की सुरक्षा के लिए आजकल की तरह तिजोरी तो न रखते होंगे ? जिनके यहाँ घर की दीवार, छत और फर्श भी सोने के हों, भला वहाँ सोने के लिए तिजौरी रखने का क्या अर्थ ? और भारत की द्वारिका नगरी भी तो सोने की थी ! क्या हुआ इन सोने की नगरियों का ? दोनों का ही अस्तित्व खाक में मिल गया । सोने की लंका ने रावण को राक्षस बना दिया तो सोने की द्वारिका मे यादवों को नर-पशु | लंका और द्वारिका के धनी मनुष्यत्व से हाथ धो बैठे थे, दुराचारों में फँस गए थे। धन के अतिरेक ने उन्हें अंधा बना दिया था । आज कुछ गौरव है, उन धनी मानी नरेशों का ? मैं दिल्ली और आगरा में विखरे हुए मुगल सम्राटों के वैभव को देख रहा हूँ। क्या लाल किला और ताज इसीलिए बनाए गए थे कि उन पर चाँद सितारे के मुस्लिम झंडे के स्थान पर अँग्रेजों का यूनियन जैक फहराए । अाज कहाँ हैं, मुग़ल सम्राटों के उत्तराधिकारी ? कितने अत्याचार किए, कितने निरीह जनसमूह कतल किए ? परन्तु वे सिंहासन, जिनके पाये पाताले में गाड़ कर मजबूत किए जा रहे थे, उखड़े विना न रहे । और वह यूनियन जैक भी कहाँ है, जो समुद्रों पार से तूफान की तरह बढ़ता, हाहाकार मचाता भारत में आया था ? क्या वह वापस लौटने के इरादे For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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