SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 361
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रत्याख्यान पारणा-सूत्र (1) फासियं ( स्पृष्ट अथवा स्पर्शित ) गुरुदेव से या स्वयं विधिपूर्वक प्रत्याख्यान लेना।' (२) पालिये ( पालित ) प्रत्याख्यान को बार-बार उपयोग में लाकर सावधानी के साथ उसकी सतत रक्षा करना । (३) सोहियं ( शोधित) कोई दूषण लग जाय तो सहसा उसकी शुद्धि करना । अथवा 'सोयिं' का संस्कृत रूप शोभित भी होता है। इस दशा में अर्थ होगा----२गुरुजनों को, साथियों को अथवा अतिथिजनरें को भोजन देकर स्वयं भोजन करना । (४) तीरियं ( तीरित ) लिए हुए प्रत्याख्यान का समय पूरा हो जाने पर भी कुछ समय ठहर कर भोजन करना । (५) किट्टियं ( कीर्तित ) भोजन प्रारंभ करने से पहले लिए हुए प्रत्याख्यान को विचार कर उत्कीर्तन-पूर्वक कहना कि मैंने अमुक प्रत्याख्यान अमुक रूप से ग्रहण किया था, वह भली भाँति पूर्ण होगया है । ( ६ ) पाराहियं ( आराधित , सब दोषों से सर्वथा दूर रहते हुए ऊपर कही हुई विधि के अनुसार प्रत्याख्यान की आराधना करना।' साधारण मनुष्य सर्वथाभ्रान्ति रहित नहीं हो सकता। वह साधना १-'प्रत्या ज्यान ग्रहणकाले विधिना प्राप्तम् ।' _ ---प्रवचन सारो-द्धार वृत्ति । प्राचार्य हरिभद्र फासियं का अर्थ 'स्वीकृत प्रत्याख्यान को बीच में खण्डित न करते हुए शुद्ध भावना से पालन करना' करते हैं । 'फासियं नाम जं अंतरा न खंडेति ।' श्रावश्यक चूर्णि २-'शोभितं-गुर्वादि प्रदत्तशेषभोजनाऽऽसे बनेन राजितम् ।' -प्रवचन सारोद्धार वृत्ति । 'सोभित' नाम जो भत्तपाणं प्राण त्ता पुत्व दाऊण सेसं भुजति दायव्वपरिणामेण वा, जदि पुण एक्कतो भुजति ताहे ण सोहियं भवति।' -प्राचार्य जिनदासकृत अावश्यक चूर्णि For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy