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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्रभगा-सूत्र जितने काल के लिए त्याग करना हो, उतना काल त्याग करत समय अपने मन में निश्चित कर लेना चाहिए । प्रत्याख्यान पारणा सत्र उग्गए सूरे नमुक्कार सहियं """पञ्चक्खाणं कयं । तं पच्चक्खाणं सम्मं कारण फासियं, पालियं, तीरियं, किट्टियं, सोहियं, श्राराहिअं। जं च न पाराहि, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। भावार्थ सूर्योदय होने पर जो नमस्कार सहित प्रत्याख्यान किया था, वह प्रत्याख्यान ( मन वचन ) शरीर के द्वारा सम्यक रूप से स्पृष्ट, पालित, शोधित, तीरित, कीर्तित एवं पाराधित किया। और जो सम्यक रूप से पाराधित न किया हो, उसका दुष्कृत मेरे लिए मिथ्या हो। विवेचन यह प्रत्याख्यानपूर्ति का सूत्र है। कोई भी प्रत्याख्यान किया हो उसकी समाप्ति प्रस्तुत सूत्र के द्वारा करनी चाहिए। ऊपर मूल पाठ में 'नमुक्कारसहिय' नमस्का रिका का सूचक सामान्य शब्द है । इसके स्थान में जो प्रत्याख्यान ग्रहण कर रक्खा हो उसका नाम लेना चाहिए। जैसे कि पौरुषी ले रक्खी हो तो 'पोरिसी पञ्चक्खाणं कयं' ऐसा कहना चाहिए। प्रत्याख्यान पालने के छह अङ्ग बतलाए गए हैं । अस्तु मूल पाठ के अनुसार निम्नोक्त छहों अंगों से प्रत्याख्यान की आराधना करनी चाहिए। For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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