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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३३२ श्रमण-सूत्र भावार्थ दिवस चरम का व्रत ग्रहण करता हूँ, फलतः अशन, पान, खादिम और स्वादिम चारों आहार का त्याग करता हूँ। अनाभोग, सहसाकार, महत्तराकार और सर्वसमाधिप्रत्ययाकारउक चार भागारों के सिवा थाहार का त्याग करता हूँ। विवेचन यह चरम प्रत्याख्यान सूत्र है । 'चरम' का अर्थ 'अन्तिम भाग' है। वह दो प्रकार का है-दिवस का अन्तिम भाग और भव अर्थात् श्रायु का अन्तिम भाग । सूर्य के अस्त होने से पहले ही दूसरे दिन सूर्योदय तक के लिए चारों अथवा तीनों आहारों का त्याग करना, दिवस चरम प्रत्याख्यान है। अर्थात् उक्त प्रत्याख्यान में शेष दिवस और सम्पूर्ण रात्रिभर के लिए चार अथवा तीन श्राहार का त्याग किया जाता है । साधक के लिए आवश्यक है कि वह कम से कम दो घड़ी दिन रहते ही श्राहार पानी से निवृत्त हो जाय और सायंकालीन प्रतिक्रमण के लिए तैयारी करे। ___ भवचरम प्रत्याख्यान का अर्थ है जब साधक को यह निश्चय हो जाय कि श्रायु थोड़ी ही शेष है तो यावजीवन के लिए चारों या तीनों श्राहारों का त्याग करदे और संथारा ग्रहण कर के संयम की अाराधना करे। भवचरम का प्रत्याख्यान, जीवन भर की संयम साधना सम्बन्धी सफलता का उज्ज्वल प्रतीक है। भवचरम का प्रत्याख्यान करना हो तो 'दिवस चरिमं' के स्थान में 'भव चरिमं बोलना चाहिए । शेष पाठ दिवस चरम के समान ही है । दिवस चरम और भवचरम चउविहाहार ीर तिविहाहार दोनों प्रकार से होते हैं । तिविहाहार में पानी ग्रहण किया जा सकता है। साधु के लिए 'दिवसचरम' चउविहाहार ही माना गया है । For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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