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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org द्वादशावर्त गुरुवन्दन-सूत्र २६५ दूसरा खमासमणो भी इसी प्रकार पढ़ना चाहिए । केवल इतना अन्तर है कि दूसरी बार 'श्रावस्सियाए' पद नहीं कहा जाता है, और श्रवग्रह से बाहर न आकर वहीं संपूर्ण खमासमणो पढ़ा जाता है । तथा प्रतिचार-चिन्तन एवं श्रमण सूत्र नमो चउवीसाए- पाठान्तर्गत 'तस्स धम्मस्स' तक गुरु चरणों में ही पढ़ने के बाद 'अभुट्टिओमि' कहते हुए, उठ कर बाहर आना चाहिए । प्रस्तुत पाठ में जो 'बहुसुमेण मे दिवसो वइक्कतो' के अंश में 'दिवसो वइक्कतो' पाठ है, उसके स्थान में रात्रिक प्रतिक्रमण में 'राई वक्ता' पाक्षिक प्रतिक्रमण में 'पक्खो वइक्कतो' चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में 'चमासी वइक्कता' तथा सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में 'संवच्छरो वइक्कतो' ऐसा पाठ पढ़ना चाहिए । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir वन्दन के २५ आवश्यक श्री समवायांग सूत्र के १२ वे समवाय में वन्दन स्वरूप का निर्णय देते हुए भगवान् महावीर ने वन्दन के २५ आवश्यक बतलाए हैं : दुओ यं जहाजायं, किति कम्मं बारसावगं । चउसिरं तिगुतं च, दुपवेसं एग - निक्खमरणं ॥ - 'दो अवनत, एक यथाजात, बारह श्रावर्त, चार शिर, तीन गुप्ति, दो प्रवेश और एक निष्क्रमण - इस प्रकार कुल पच्चीस आवश्यक हैं ।' स्पष्टीकरण के लिए नीचे देखिए : दो अवनत अवग्रह से बाहर रहा हुआ शिष्य सर्वं प्रथम पनच चढ़ाए हुए धनुष के समान अवनत होकर 'इच्छामि खमासमणो व दिउं जाव णिजाए निसीहियाए' कहकर गुरुदेव को वन्दन करने की इच्छा का For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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