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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir मानव जीवन का महत्त्व में ही जीवन गुजार रहा था। उसे पता ही न था कि कोई और भी दुनिया हो सकती है। एक दिन बहुत भयंकर तेज अंधड़ चला और उस शैवाल में एक जगह ज़रा-सा छेद हो गया । देवयोग से वह कछुश्रा उस समय वहीं छेद के नीचे गर्दन लम्बी कर रहा था तो उसने सहसा देखा कि ऊपर आकाश चाँद, नक्षत्र और अनेक कोटि ताराओं की ज्योति से जगमग-जगमग कर रहा है। कछुवा अानंद-विभोर हो उठा। उसे अपने जीवन में यह दृश्य देखने का पहला ही अवसर मिला था। वह प्रसन्न होकर अपने साथियों के पास दौड़ा गया कि 'प्रायो, मैं तुम्हें एक नई दुनिया का सुन्दर दृश्य दिखाऊँ। वह दुनिया हमसे ऊपर है, रत्नों से जड़ी हुई, जगमग जगमग करती!' सब साथी दौड़ कर पाए, परन्तु इतने में ही वह छेद बन्द हो चुका था और शैवाल का अखण्ड आवरण पुनः अपने पहले के रूप में तन गया था। वह कछुवा बहुत देर तक इधर-उधर टक्कर मारता रहा, परन्तु कुछ भी न दिखा सका! साथी हँसते हुए चले गए कि मालूम होता है, तुमने कोई स्वप्न देख लिया है ! क्या उस कछुवे को पुनः छेद मिल सकता है, ताकि वह चाँद और तारों से जगमगाता आकाश-लोक अपने साथियों को दिखा सके ? यह सब हो सकता है, परन्तु नर-जन्म खोने के बाद पुनः उसका मिलना सरल नहीं है।" ____ "स्वयंभूरमण समुद्र सबसे बड़ा समुद्र माना गया है, असंख्यात हजार योजन का लंबा-चौड़ा । पूर्व दिशा के किनारे पर एक जूना पानी में छोड़ दिया जाय, और दूसरी तरफ़ पश्चिम के किनारे पर एक कीली । क्या कभी हवा के झोंकों से लहरों पर तैरती हुई कीली जूए के छेद में अपने आप आकर लग सकती है ? संभव है यह अघटित घटना घटित हो जाय ! परन्तु एक बार खोने के बाद मनुष्य जन्म का फिर प्राप्त होना अत्यन्त कठिन है !" . "कल्पना करो कि एक देवता पत्थर के स्तम्भ को पीस कर आटे की तरह चूर्ण बना दे और उसे बाँस की नली में डालकर मेरु पर्वत की For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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