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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २१६ श्रमं = श्रब्रह्मचर्य को परित्राणामि = जानता हूँ और त्यागता हूँ श्रमण-सूत्र बंभ = ब्रह्मचर्यं को उबस पजामि = स्वीकार करता हूँ क = अकल्प = कृत्य को परिश्राणामि = जानता हूँ, त्यागता हूँ कम्प = कल्प = कृत्य को उक्स पजामि = स्वीकार करता हूँ अन्नाण अज्ञान को परित्राणामि = जानता हूँ और त्यागता हूँ नां = ज्ञान को उपस ंपजामि = स्वीकार करता हूँ अकिरियं = अक्रिया को परित्राणामि = जानता हूँ एव' त्यागता हूँ किरिय = किया को उवस 'पजामि = स्वीकार करता हूँ मिच्छत्त = मिथ्यात्व को परित्राणामि = जानता हूँ तथा त्यागता हूँ सम्मत्तं = सम्यक्त्व को उवस 'पजामि = स्वीकार करता हूँ बोहिं = बोधि को Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir परिश्राणामि = जानता हूँ और त्यागता हूँ बोदि = बोधि को उवस पजामि = = स्वीकार करता हूँ अमगं = श्रमार्ग को परियाणामि= जानता हूँ, त्यागता हूँ मग्गं = मार्ग को उवम पजामि = स्वीकार करता हूँ जं - जो समरामि = च = और जं = जो | = स्मरण करता हूँ न = नहीं समरामि जं = जिसका पडिक्कमामि च = और जं जिसका For Private And Personal = स्मरण करता न = नहीं परिक्रमामि = प्रतिक्रमण करता हूँ तस्स = उस * प्रतिक्रमण करता हूँ सव्वत्स = सब देवसिस्स = दिवस सम्बन्धी ग्रइयारस्स = श्रतिचार का पडिक मामि = प्रतिक्रमण करता हूँ समणोहं = मैं श्रमण हूँ संजय संयमी हूँ ·
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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