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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रतिज्ञा-सूत्र मिद्धि मगं - सिद्धि का मार्ग है सदहामि = श्रद्धा करता हूँ मुत्ति मग्गं = मुक्रि का मार्ग है पत्तियामि = प्रतीति करता हूँ निजाणमग्गं = संसार से निकलने रोएमि = रुचि करता हूँ ___ का मार्ग है, मोक्ष फासेमि = स्पर्शना करता हूँ स्थान का मार्ग है पालेमि=पालना करता हूँ निव्वाण मग्गं = निर्वाण का मार्ग अणु = विशेष रूप से है, परम शान्ति पालेमि = पालना करता हूँ का कारण है तं = उस अवितहं = तथ्य है, यथार्थ है धम्म = धर्म की अविसधि = अव्यवच्छिन्न है, सदा सदहंतो= श्रद्धा करता हुश्रा शाश्वत है पत्तियतो = प्रतीति करता हुआ सब-सब रोतो= रुचि करता हुआ दुक्ख = दुःखों के फासतो = स्पर्शना करता हुआ पहीण - क्षय का पालंता : पालना करता हुश्रा मग्गं = माग है अणु-विशेष रूप से इत्थं = इसमें पालंतो-पालना करता हुश्रा ठिया -- स्थित हुए तस्स = उस जीवा जीव धम्मस्स = धर्म की सिझति = सिद्ध होते हैं याराहणाए = अाराधना में बुज्झति = बुद्ध होते हैं अब्भुठ्ठिोमि-उपस्थित हुअा हूँ मुच्चंति = मुक्र होते हैं विराहणाए = विराधना से परिनिव्वायंति-निर्वाण को प्राप्त होते हैं विरोमि = निवृत्त हुश्रा हूँ सम्बदुक्खाण = सब दुःखों का असजम = असंयम को अन्तं - अन्त, क्षय परिश्राणामि =जानता हूँ एवं करेन्ति = करते हैं त्यागता हूँ तं - उस सजम = संयम को बम्न = धर्म की उस पजामि = स्वीकार करता हूँ For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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