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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १६४ श्रमण-सूत्र देवीण = देवियों की श्रासायगाए =अाशातना से इहलोगस्स = इस लोक की श्रासायणाए%ाशातना से परलोगस्स = परलोक की श्रासायणाए = श्राशातना से केवलि =सर्वज्ञ द्वारा पन्नत्तस्स-प्ररूपित धम्मस्स = धर्म की श्रासायणाए = पाशातना से सदेव = देव सहित मणुा -मनुष्य सहित ऽसुरस्स असुर सहित लोगस्स = समग्र लोक की श्रासायणाए = अाशातना से सव्व = सब पाण = प्राणी भूत-भूत जीव-जीव सत्ताण = सत्त्वों की श्रासायणाए-आशातना से कालस्स = काल की श्रासायणाए- श्राशातना से सुयस्स = श्रुत की अासायणाए-आशातना से सुयदेवयाए - श्रुत देवता की श्रासायणाए- अाशातना से वायणायरियस्स = वाचनाचार्य की श्रासायणाए-अाशातना से (जो दोष लगा हो) जं और जो (भागम पढ़ते हुए) वाइद्ध-पाठ आगे पीछे बोला हो बच्चामेलियं-शून्य मन से कई बार बोला हो अथवा अन्य सूत्र का पाठ अन्य सूत्र में मिला दिया हो हीणक्खरं = अक्षर छोड़ दिए हो' अञ्चक्खरं = अतर बढ़ा दिए हों पयहीण = पद छोड़ दिए हो । विणयहीण = विनय न किया हो जोगहीण= योग से हीन पढ़ा हो घोसहीण= घोष से रहित पढ़ा हो सुटठु = योग्यता से अधिक पाठ दिन्नं%3Dशिष्यों को दिया हो टुट्ठ-बुरे भाव से पडिच्छियं = ग्रहण किया हो श्रकाले= अकाल में सज्झायो स्वाध्याय कयो-किया हो काले = काल में सज्झायो-स्वाध्याय न कयोन किया हो असज्झाइए - अस्वाभ्यायिक में सज्झाइयं-स्वाध्याय की हो For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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