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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir हद श्रमण-सूत्र है, पाप पुण्य का पता चलता है, कर्तव्य कर्तव्य का ज्ञान होता है । स्वाध्याय हमारे अन्धकारपूर्ण जीवन पथ के लिए दीपक के समान है। जिस प्रकार दीपक के द्वारा हमें मार्ग के अच्छे और बुरे पन का पता चलता है और तदनुसार खराब ऊबड़-खाबड़ मार्ग को छोड़ कर अच्छे साफ़ सुथरे पथ पर चलते हैं, ठीक उसी प्रकार स्वाध्याय के द्वारा हम का पता लगा लेते हैं और ज़रा विवेक का श्राश्रय ले तो धर्म को छोड़कर धर्म के पथ पर चलकर जीवन यात्रा को प्रशस्त बना सकते हैं । शास्त्रकारों ने स्वाध्याय को नन्दन वन की उपमा दी है। जिस प्रकार नन्दन वन में प्रत्येक दिशा की ओर भव्य से भव्य दृश्य, मन को श्रानन्दित करने के लिए होते हैं, वहाँ जाकर मनुष्य सत्र प्रकार की दुःख क्लेश सम्बन्धी टे भूल जाता हैं, उसी प्रकार स्वाध्यायरूप नन्दन वन में भी एक से एक सुन्दर एवं शिक्षा-प्रद दृश्य देखने को मिलते हैं, तथा मन दुनियावी झटों से मुक्त होकर एक अलौकिक आनन्द लोक में विचरण करने लगता है । स्वाध्याय करते समय कभी महापुरुषों के जीवन की पवित्र एवं दिव्य झाँकी आँखों के सामने श्राती है, कभी स्वर्गं और नरक के दृश्य धर्म तथा धर्म का परिणाम दिखलाने लगते हैं । कभी महापुरुषों की अमृतवाणी की पुनीत धारा बहती हुई मिलती है, कभी तर्क-वितर्क की हवाई उड़ान बुद्धि को बहुत ऊँचे अनन्त विचाराकाश में उठा ले जाती है । और कभी कभी श्रद्धा, भक्ति एवं सदाचार के ज्योतिमय श्रादर्श हृदय को गद्गद् कर देते हैं। शास्त्रवाचन हमारे लिए 'यत् पिण्डे तद् ब्रह्माडे' का आदर्श उपस्थित करता है । जब कभी आपका हृदय बुझा हुग्रा हो, मुरझाया हुआ हो, तुम्हें चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार घिरा नजर श्राता हो, कदम-कदम पर विघ्नबाधाओं के जाल बिछे हुए हों तो आप किसी उच्चकोटि के पवित्र अध्यात्मिक ग्रन्थ का स्वाध्याय कीजिए | श्राप का हृदय ज्योतिर्मय हो जायगा, चारों श्रोर प्रकाश ही प्रकाश बिखरा नजर ग्रायगा, विन्नबाधाएँ चूर-चूर होती For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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