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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीशत्रुजयना एकवीश नाम कहीयें बैयें ॥ ॥विमलगिरि मुत्तिनिल, शनुंजो सिखित्त पुंमरि ॥ सिरि सिझसेहर, सिपवन सिघराज्य ॥१॥ बादुबलि मरुदेवो, जगीरदो सहस्तपत्त सयवत्तो ।। कू डसयहत्तर, नगाहिरा सहस्सकमलो॥ ५॥ ढंको कनडि निवासो, लोहियो तालुन कयंबुत्ति ॥ सुरनर मुणिकय नामो, सो विमलगिरि जय तिळ ॥३॥ अर्थः-१ प्रथम जेने वांदवायी,फरसवाथी,पूजवाथी तथा गुणस्तुति करवायी जीव कर्म मल रहित थाय विमल थाय तेथी ए तीर्थनुं नाम विमल गिरि जाणवो. २ श्रीनरतचक्रवर्तिथी यात पाट बारीशा नुवनमां के वलझान पामी मोक्ष पद पामसे माटे मुक्तिनिलय नाम ३ जीतारी राजा, ए तीर्थ सेवी ब मास आयंबिन तप करो शत्रुने जीतशे माटे शत्रुजय नाम जाणवो. Hए तीर्थ नपरे कांकरे कांकरे अनंता जीव सिदि वस्थाले माटे (सिखित्तके) सिचदेव नाम जाणवो. ___५ हे पुमरिक गणधर तमे चैत्र शुदि पुनेमनां दिवसें पांच कोडी मुनि सहित सिदि पामसो अथवा सर्व तीर्थरूप कमलमा पुमरिक कमल समान सर्वो त्तम ए तीर्थडे माटे एर्नु पुमरिकगिरि नाम जाणवो. For Private and Personal Use Only
SR No.020710
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirnaysagar Press
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1885
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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