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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६१ ) व निंदा, सुमतिनाथ मुख पूनमचंदा, पद्म व्रज सुख कंदा ॥ श्रीसुपार्श्व चंप्रन सुविधि, शीतल श्रेयांस सेवो बहुबुद्धि, वासुपूज्य मति सुद्धि ॥ वि मल अनंत जिन धर्म ए शांति, कुंथु र मनि नमुं एकांति, मुनिसुव्रत सुद्ध पंथि ॥ नमी पासने वीर चोवीश, नेम विना एंजिन त्रेवीश, सिद्धगिरि याव्या ईश ॥ २॥ नरतराय जिन सायें बोले, स्वामी शत्रुंजय गिरि कुण तोले, जिननुं वचन अमोले ॥ कषन कहे सुणो जरतराय, बहरी पालतां जे नर जाय, पातिक नूको थाय ॥ पशु पंखी जे इलगिरि खावे, नवत्रीजे ते सिज थावे, अजरामर पद पावे || जिनमतमें शत्रुजो वखाएयो, ते में यागम दिल मांहे थाल्यो, सुतां सुख नर आयो || ३ || संघ पति नरत न रेसर यावे, सोवन तयां प्रासाद करावे, मणिमय मूरति गवे ॥ नानिराया मरु देवी माता, ब्राह्मी सुं दरी बेहेन विख्याता, मूर्ति नवाणुं त्राता ॥ गोमुख ने चक्केसरी देवी, शत्रुंजय सार करे नित्य मेवी, तप ग उपर हेवी ॥ श्रीविजयसेन सूरीश्वर राया, श्रीवि जयदेवसूरि प्रणमी पाया, रूपनदास गुण गाया ॥४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020710
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirnaysagar Press
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1885
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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