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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३५) ति वीरा स्नेहें || हुं० ॥ चोवीश जिननां पंच कल्याणिक, एकशो वीश संजारीजी ॥ शाश्वता चार प्रभु सरवाले, सहसकूट निरधारी ॥ ॥ १७ ॥ गोमुख यक्ष चक्केसरी देवी, तीरथनी रखवालीजी ॥ ते प्रजुनां पदपंकज सेवे, कहे अमृत निहाली ॥ हुं० ॥ १८ ॥ ॥ दाल त्रीजी ॥ मुनिसुव्रतजिन घरज मारी ॥ ए देशी ॥ || एक दिशाथी जिनघर संख्या, जिनवरनी संन लावुं रे ॥ यातमथी उलखाण करीने, ते यहिगण बता रे || त्रिभुवन तारण तीरथ वंदो ॥ १ ॥ ए कली ॥ रायणथी दणने पासें, देहरी एक नले रे ॥ तेहमां चौमुख दोय जुहारुं, टालु नवनी फे री रे ॥ त्रिनु ॥ २ ॥ चौमुख सर्व मलीने लूटा, वीश संख्यायें जालो रे || बूटी प्रतिमा या जुहारी, करी यें जनम प्रमाणो रे ॥ त्रिनु ॥ ३ ॥ संघवी मोती चंद पटणीनुं, सुंदर जिनघर शोहे रे ॥ तिहां प्रतिमा उगणीश जुहारी, हीयडुं हरखित होये रे ॥ त्रिनु || ॥ ४ ॥ श्रीसमेत शिखरनी रचनां कीधोबे नली नां ते रे ॥ वीश जिनेसर पगला वंडु, बावोशजिन संघा तेरें ॥ त्रिजु ॥ ५ ॥ कुशलबानां चोमुख मांहे, For Private and Personal Use Only
SR No.020710
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirnaysagar Press
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1885
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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