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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४३) भीसणदुहं बहुविहं, अणंतखुत्तो समणुभूअं ॥ ६२ ॥ तिरियंगई अणुपत्तो, भीममहावेअणा अणेगविहा । जम्मण-मरणरहट्टे, अणंतखुत्तो परिन्भमिओ॥३३॥ हे जीव ! तें देवभवने विषे तथा मनुष्यभवने विषे परतंत्रताना पाशमां सपडाइ भयंकर घणा प्रकारदुःख अनन्ती वार अनुभव्युं ॥ ६२ ॥ वळी तुं तिर्यंच गतिमां उत्पन्न थयो त्यां अनेक प्रकारनी भयंकर महावेदनाओ भोगवी. आवी रीते चारे गतिमां जन्म अने मरण रूपी रेंटने विषे अनन्ती वार भटक्यो. आ जगत्मां एवं कोइ दुःख नथी के जे दुःख तें सहन कयुं न होय, आवी रीते अनन्ती वार घोर महाभयानक दुःख तें सहन काँ!. माटे हवे धर्मसाधन कर, के जेथी तेवां दुःख भोगववां न पडे. ॥ ६३ ॥ * भीषणदुःखं बहुविधम् , अनन्तकृलः समनुभूतम् ॥ १२ ॥ + तिर्यग्गतिमनुप्राप्तो, भीममहावेदना अनेकविधाः । जन्म-मरणाऽरघटे, अनन्तकृलः परित्रान्तः ॥ ६३ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020692
Book TitleSartham Bhavvairagya Shatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA M and Company
PublisherA M and Company
Publication Year1918
Total Pages75
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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