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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Kxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxy ततो तिरितं ततो पच्छा अहे, अहोलोगे णं दुरभिगमे पन्नत्ते समणाउसो । सू० २१३ मूलार्थः-त्रण प्रकारे पुद्गलो(परमाणु विगैरे)नो प्रतिघात( गतिनी स्खलना ) कहेल छे, ते आ प्रमाणे-१ परमाणुपुद्गल, वीजा परमाणुपुद्गलने पामीने-अथडाईने गतिनी स्खलना थाय. (जम पाषाणने फेंकतां थकां बीजा पाषाण साथे अथडाईने ते पाछो पडे छ तेम) २ रुक्ष( लूखा )पणाथी परमाणुपुद्गल स्खलित थाय छे-अटके छ, ३ परमाणुपुद्गल लोकना अंते स्खलित थाय छे-अटके छे; कारण के त्यां धर्मास्तिकायनो अभाव छ (सू०२११)त्रण प्रकारे चक्षु कहेल छे, ते आ प्रमाणे-(चक्षु, द्रव्यथी नेत्र अने भावथी ज्ञानरूप समजबु.) १ एक चक्षु, २ चे चक्षु अने ३ त्रण चक्षु (अहिं चक्षु शब्दथी चक्षुवाळा समजवा ), छमस्थ मनुष्य (विशिष्ट ज्ञान-चक्षु रहित होवाथी) एक चक्षुवाळो छ, देव वे चक्षुधाळा छे (चक्षुरिंद्रिय अने अवधिज्ञान सहित होवाथी) अने उत्पन्न थयेल ज्ञानदर्शनने धरनार एवो तथारूपश्रमण-माहण त्रण चक्षुवाळो कहेवाय. (ते आ प्रमाण-१ द्रव्यनेत्र, २ परमश्रुत अने ३ अवधिज्ञानरूप नेत्र) (सू० २१२) त्रण प्रकारे अभिसमागम (वस्तुने * यथार्थ स्वरूपे जाणवू ) कहेल छे, ते आ प्रमाणे ऊंचो, नीचो अने तिछो अभिसमागम छे अर्थात् ऊर्ध्व लोकादि प्रत्ये जाणे छे. ज्यारे तथारूप (श्रुतचारित्र युक्त) श्रमण-माहणने अतिशेष परमावधिरूप ज्ञान अने दर्शन उत्पन्न थाय छे त्यारे ते साधु - पहेला ऊर्ध्वलोकने जाणे छे, त्यारपछी तिर्छा लोकने जाणे छे, त्यारबाद अधोलोकने जाणे छे. हे आयुष्मन् श्रमण ! ते मुनिन अधोलोकनुं ज्ञान दुष्कर छे माटे अधोलोकने छेल्लु जाणे छे. (सू० २१३) Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxaxxxnx For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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