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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥७३॥ Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx काल पर्यंत पण पच्चक्खाण करे छ (सू० ६२), बे स्थानक( गुण )वडे युक्त अनगार अनादिकालावशिष्ट, अंत रहित दीर्घकाल X२ स्थानकानरकादि चार गतिरूप संसार अरण्य(जंगल)ने उल्लंघन करे ते आ प्रमाणे-विद्या( ज्ञान )वडे अने चारित्रवडे ज. (सू० ६३). ध्ययने ___टीकार्थः-'दुविहे पञ्चक्खाणे' त्यादि, प्रमादना प्रतिकूलपणाए (प्रमाद छोडीने ) मर्यादावडे ख्यान-कथन करवू उद्देशः १ ते प्रत्याख्यान, विधि अने निषेधस्वरूप प्रतिज्ञा इत्यर्थ. द्रव्यथी प्रत्याख्यान मिथ्यादृष्टिने अने करेल छे चातुर्मासमां मांसजें ४प्रत्याख्यान| पच्चखाण जेणीए तेवी अने पारणाने दिवसे मांसना दानमा प्रवर्तली राजपुत्रीनी जेम उपयोग रहित सम्यग्दृष्टि जीवने होय छे, राहत सम्यग्दृष्टि जावन होय छ, स्य मोक्षभावप्रत्याख्यान उपयोग सहित सम्यग्दृष्टि जीवने होय छे. ते प्रत्याख्यान देशथी अने सर्वथी तथा मूलगुण अने उत्तरगुणना भेदथी अनेक प्रकारे छे, तो पण करणभेदथी बे प्रकारे कहे छे-मनवडे पण एक (व्यक्ति) प्रत्याख्यान करे छे अर्थात् वध वगेरेनो हेतोश्च निवृत्तिविषय (त्याग) करे छे. शेष-बाकी पूर्वनी जेम जाणवू. प्रकारांतरवडे पण प्रत्याख्यान कहे छे–'अहवे' त्यादि संगम छे. (मू० द्वैविध्यम् ६२) ज्ञानपूर्वक प्रत्याख्यान वगेरे मोक्ष- फल (आपनार) छे आ कारणथी कहे छः-'दोहिं ठाणेहिं' इत्यादि-चे स्थान (गुण )- ६२-६३ युक्त अनगार-(जेने घर नथी ते ) साधु, जेनी आदि नथी ते अनादि, अनवदग्र-सामान्य जीवनी अपेक्षाए जेनो अंत नथी ते, लांबो छे काल जेनो ते दीर्घाद्ध, दीर्घ शब्दमा मकार आगमिक छे, अथवा दीर्घ छे मार्ग जेने विषे ते दीर्घाध्व, चतुरंत-नरकादि गतिना विभागवडे चार भागरूप (अहिं चाउरंत शब्दमां दर्घिपणुं प्रकटादिगणना नियमथी छ) एवा भवारण्यने उल्लंघे. ते आ प्रमाणे छे-विद्या( ज्ञान )वडे ज अने चारित्रवडे ज अहिं संसाररूप कांतारनो पार पामवामां ज्ञान अने चारित्रनुं १. दार्घकाल अने अल्पकालना पञ्चक्खाणर्नु स्वरूप गर्हानो जेम जाणवू. २. प्रकटादिभ्यः दीर्घत्वमिति पाणिनिः । ॥७३॥ KXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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