SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir र स्थानका ध्ययने श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥७२॥ उद्देशः१ ___ गर्दा द्वैविध्यम् ६१ सत्रम् xxxxxxxxxxxxXXXKKKXXXXXXXXX छे-'मणसा वेगे गरहई त्ति-चित्तवडे, अहिं 'वा' शब्द विकल्पार्थ अथवा अवधारणार्थ(निश्चयार्थ)मा छे तेथी मनवडे ज गही करे छे पण वाणीवडे नहि. कायोत्सर्गमा रहेल, दुर्मुख अने सुमुख नामवाळा ये वे माणसवडे निंदायेल अने न्तुति करायेल, तेओना वचनोथी जणायेल छ सामंतोवडे पराभव पामेल पाताना पुत्र अने राज्यनी हकीकत जेण ते, मनवडे आरंभेल छ पुत्रना पराभवने करनारा सामंतो साथे संग्राम जेणे ते, मनथी कल्पेल शस्त्रोनो क्षय थये छते पोताना माथानो टोप लेवा माटे ऊंचे करायेल हाथथी स्पर्शल छे लोच करायेल मस्तक जेणे ते, मस्तकनो स्पर्श करवाथी उत्पन्न थयेल पश्चात्तापरूप अग्निनी ज्वाळाना समूहवडे अत्यंत वाळेल छे सर्व कर्मरूप इंधन जेणे एवा राजर्षि प्रसन्नचंद्रनी जेम कोई पण एक साधु निंदित कार्यनी निंदा करे छे तेम वचनथी पण अथवा वाणीवडे ज, परंतु मनथी नहि. मनुष्योनुं मनरंजन करवा माटे दुष्ट आचरण वगेरेना कहेवाथी गर्हामा प्रवर्तल अंगारमर्दक वगेरे साधुनी जेम प्रायः कोई अन्य गर्दा करे छे, पण भावथी मनवडे गर्दा न करे. अथवा 'मणसा वेगे'त्ति-अहिं 'अपि' शब्द ते संभावनाना अर्थमां छे, ते(अपि शब्द) वडे नीचे प्रमाणे अर्थ संभवे छे. एक व्यक्ति मनवडे पण गहाँ करें छे अने बीजो वाणीथी गर्दा करे छ, अथवा एक मात्र वाणीवडे नहि परन्तु मनवडे पण गर्दा करे छे, तेम केवल मनवडे नहि, वचनवडे पण गर्दा करे छे, ते ज व्यक्ति गर्दा करे छ अर्थात् बन्ने प्रकारे पण एक ज व्यक्ति गर्दा करे छे, ए तात्पर्य छे. बीजी रीते गर्हार्नु द्विपणु कहे छ:-'अहवेत्यादि-पूर्वोक्त वे प्रकारनी अपेक्षावडे * पूर्वनी माफक बीजी के प्रकारे गर्दा कहेली छ. अपि शब्द संभावना अर्थमां छे तेथी लांबा काल सुधी पण कोई व्यक्ति यावत् | जीवपर्यंत गर्दा करवा योग्य( पाप.)नी गर्दा (निंदा ) करे छे. अथवा दीर्घ अने ह्रस्वनुं आपेक्षिकपणुं होवाथी बीजी रीते XXXXXXXXXXXXXXXXXXX ।। ७२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy