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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शावर तन्त्र शास्त्र | २६६ के कार्य सम्पन्न करते हैं। परन्तु विद्युत का स्वभाव और यन्त्र की कार्य विधि समझ लेने के पश्चात् ही अन्यथा यही विद्य त जान लेने में देर नहीं लगाती। विद्युत के इस जान लेवा गुण के कारण यदि आप विद्युत उपकरणों का उपयोग न करे तो यह कोई बुद्धिमानी की बात नहीं होगी। तात्पर्य यह है कि तंत्र से इसलिये दूर भागना क्योंकि उसमें अधिक शक्ति का विस्फोट होता है; हद दर्जे की बेवकूफी और कायरता की बात है। यदि सभी ऐसा सोचने लगें तो सारे विकास कार्य रुक जाँय; न रेल चलें न हवाई जहाज । रही बात तांत्रिक अनुष्ठानों की दीक्षा उपासना आदि में सतर्कता और जागरूकता बर्तने की, वह तो आवश्यक है ही। कई मोक्ष कामी (जो केवल कामना करते हैं पाते कभी नहीं) लोगों को यह कहते सुना जाता है कि यदि धीरे-धीरे चलने में कोई रिस्क (जोखिम) नहीं है तो धीरे चलना अधिक अच्छा है, परन्तु ऐसे धीरे चलने का क्या लाभ है, जो अन्त समय तक मंजिल पर ही न पहुचे पाओ? यदि कोई 'एम० बी० बी० एस' होने में पूरी उम्र लगा दे, तो उस डिग्री का उपयोग कब करेगा ? वैसे भी यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि इस तरह धीरे-धीरे डिग्री लेने की बात करने वाले कभी भी डिग्री पूरी नहीं कर पाते । इसीलिये ऐसे छात्रों को एक-दो वर्ष की प्रतीक्षा के उपरान्त डिग्री के अयोग्य मानकर, शिक्षालय से निकाल दिया जाता है। अब हम अपने मूल विषय 'मन्त्र-गणना' पर आते हैं। मन्त्र गणना से तात्पर्य है-यह गणना कैसे की जाय कि जिस मन्त्र का जप आप किसी विशिष्ट प्रयोजन हेतु करना चाहते हैं वह "मन्त्र" आपके लिए उपयुक्त है या नहीं ? इसके लिए हमें कुछ बातों पर विस्तारपूर्वक विचार करना होता है, यथा __ वर्ग विचार-उपयुक्त मन्त्र का चयन करते समय पहले यह देखिये कि जिस प्रयोजन के लिए आप मन्त्र चनना चाहते हैं, वह किस वर्ग का है ? अर्थात स्वापेक्ष, परापेक्ष अथवा मध्यवर्ती है। स्वापेक्ष वर्ग में वे सभी मन्त्र हैं, जो अपने तक ही सीमित कार्यों के लिए प्रयुक्त होते हैं, जैसे रोग मुक्ति हेतु या लक्ष्मी प्राप्ति हेतु किये गये प्रयोग । परापेक्ष वर्ग में वे मन्त्र आते हैं. जिनमें दूसरे व्यक्ति पर प्रभाव पड़ता हो जैसे-मारण, वशोकरण उच्चाटन, स्तंभन, विद्वेषण आदि। इन दोनों के बीच के प्रयोगों के मन्त्र मध्यवर्ती वर्ग में आते हैं। जैसे गड़े धन की प्राप्ति या सन्तान प्राप्ति के मन्त्र। For Private And Personal Use Only
SR No.020671
Book TitleShavar Tantra Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Dikshit
PublisherDeep Publications
Publication Year1994
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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