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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ध्यान www.kobatirth.org शावर तन्त्र शास्त्र | २२१ -" कर कलित कपालं कुण्डली दण्डपाणीऽस्तुरग तिमिर नीलो व्याल यज्ञोपवीतः । क्रतु समय सुरच्च विघ्न विच्छेद हेतु जयति वटुकनाथ सिद्धि दे साधकानाम् ।” 634. प्रयोग-विधि सिन्दूर का चौका लगाकर उसमें एक त्रिकोण यन्त्र बनायें । यन्त्र के ऊपर कोण में 'ॐ' वाम कोण में 'कु' तथा दक्षिण कोण में 'वं' तथा मध्य में 'ह्रीं' लिखें । 'ह्रीं' के नीचे साधक अपना नाम लिखें । उक्त विधि से बनने वाले यन्त्र के स्वरूप को नीचे के चित्र में प्रदशित किया गया है ॐ कब Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवदत्तः ( वटुक - पूजन यन्त्र) यन्त्रस्थ 'ह्रीं' अक्षर के ऊपर दीपक रक्खें। फिर संकल्प, न्यास तथा ध्यान करके आवाहान आदि षोडश उपचारों से पूजन करें । यन्त्र में जहाँ 'ॐ' लिखा है, वहाँ तेल में तले हुए उड़द के बड़े रक्खें । जहाँ 'व' लिखा है, वहाँ दही तथा जहां 'कु' लिखा है, वहाँ गुड़ रक्खें। थोड़ी सी सामग्री अछूती अलग से भोग में रखनी चाहिए । बड़े, दही और गुड़ मिलाकर रक्खें । वटुक के भोग की पाँच वस्तुएँ J होती हैं- बड़े, दही, गुड़, शराब तथा भुनी हुई छोटी मछली । For Private And Personal Use Only
SR No.020671
Book TitleShavar Tantra Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Dikshit
PublisherDeep Publications
Publication Year1994
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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