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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा १६७ १६८ विषय .. पत्र २९ केवलिसमुद्धातनुं सविस्तर स्वरूपनिरूपण १५९-६४ २९ बधाए केवलियो समुद्घात करे के न करे ? ए शङ्कानुं समाधान, १६० ३० उपयोगनां नाम अने मार्गणास्थानना उत्तरभेदोमां उपयोग ३० बार उपयोगमां साकार अने अनाकार विभाग १६४ ३०-३४ चौद मार्गणास्थानना उत्तरभेदोमां कया कया उपयोगी होय ? तेनुं स्वरूप १६५-६६ ३५ योगनी अन्दर जीवस्थान, गुणस्थान, योग अने उपयोगने आश्री मतान्तरतुं निरूपण ,. .३६ चौदमार्गणास्थानना उत्तरभेदोमां कई कई लेश्याओ होय ? तेनुं स्वरूप .. ३७ मार्गणास्थानमा स्वस्थाननी अपेक्षाए गतिनुं गतिसाथे परस्पर अल्पबहुत्व अने मनुष्यादिनी सङ्ख्याप्रमाण विगेरे सविशेष स्वरूपनिरूपण ३८ मार्गणास्थानमा इन्द्रियन इन्द्रियसाथे अने कायर्नु काय साथे परस्पर अल्पबहुत्व ३९ मार्गणास्थानमा योगनुं योगसाथे अने वेदनुं वेद साथे परस्पर अल्पबहुत्व १७४ ४०-४२ मार्गणास्थानमां कषायनी साथे कषायनुं ज्ञाननी साथे ज्ञाननु, संय मनी साथे संयमनुं अने दर्शननी साथे दर्शन- परस्पर अल्पबहुत्व १७५-७६ ४३-४४ मार्गणास्थानमा लेश्यानी साथे लेश्यानु, भव्याभव्यनु, सम्यक्त्वनी साथे सम्यक्त्वनु संज्ञि-असंज्ञिनुं अने आहारक-अनाहारकर्नु परस्पर अल्पबहुत्व १७७-७८ ...,४४ सिद्ध करतां संसारी जीवो अनन्तगुणा छे अने ते बधाए प्रायः आहारी छे तो अनाहारीथी आहारी असयातगुणा केम सम्भवे ? ए शङ्कानुं समाधान १७९ ., तृतीय गुणस्थानाधिकार. ....४५ गुणस्थानमां चौद जीवस्थान- स्वरूप ४६-४७ गुणस्थानमां पंदर योगोनुं स्वरूप .१७९-८० ४८-४९ गुणस्थानमां बार उपयोगर्नु स्वरूप अने ते विषयमा कार्म. ग्रन्थिक करतां सिद्धान्तनुं जुदुं मन्तव्य १८०-८२ १७२ For Private and Personal Use Only
SR No.020663
Book TitleSatikachatvar Karmgrantha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1934
Total Pages286
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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